Thursday, July 24, 2008

या खुदा आहिस्ता आहिस्ता यह रात चले

देख लो जो जरा कि जज्बात चले।
लब खुलें जो तुम्हारे तो बात चले।

चांद भी है और मेरा महबूब भी।
या खुदा आहिस्ता आहिस्ता यह रात चले।

आज विरान हो गया यह शहर कल तक जो आबाद था।
देखो किस रफ्तार से ये बेरहम हालात चले।।

किसी से मिलना तो इतनी गुंजाईश जरूर रखना।
कुछ चले ना चले इक अदद मुलाकात चले।।

चांद की सैर करी, तारों को तोड लाया मैं।
बैठे बैठे दिमाग में क्या क्या ख्यालात चले।।

देख लो जो जरा कि जज्बात चले।
लब खुलें जो तुम्हारे तो बात चले।

Tuesday, July 15, 2008

ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे

तुमको देखा तो खामोशी से तर हो गया।
जिंदगी तेरी राहों में मैं रहगुजर हो गया।।

ताउम्र ना भरी चोट जिनसे लगी।
उन निगाहों का सदके नजर हो गया।।

रोते रोते अचानक मैं हंसने लगा।
उसकी सोहबत का ऐसा असर हो गया।।

तुमने ही तो लगाया था यह पौधा कभी।
पूछते हो हमसे यह कैसे जहर हो गया।।

ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे।
घर से निकले हुए इक पहर हो गया।।

तुमको देखा तो खामोशी से तर हो गया।
जिंदगी तेरी राहों में मैं रहगुजर हो गया।।

Saturday, July 12, 2008

किस हक से अब गैरों को बुलाया जाए

सूनी आंखों में ख्वाबों को सजाया जाए।
चलो दूर कहीं इक शहर बसाया जाए।।

कब तक सोएगा मुसाफिर उस फुटपाथ पर।
सर तक धूप चढ आई है उसे जगाया जाए।।

जब अपनों ने ही नहीं छोडा किसी काबिल तो।
किस हक से अब गैरों को बुलाया जाए।।

क्यूं कहूं दोस्त तुमको,क्यूं तुम्हें याद करूं।
किस काम कि दोस्ती,जिसमें हर गम सुनाया जाए।।

देखते देखते कितने दूर चले गए तुम तो।
तुम्ही बताओ ना तुम्हें कैसे बुलाया जाए।।

बहुत रात हो चुकी है सोचते सोचते।
चलो चादर से अब इन सितारों को हटाया जाए।।

Tuesday, July 8, 2008

मुलायम जी क्या होगा इस सरकार का

क्या केंद्र की यूपीए सरकार गई। यह सवाल आज हर हिंदुस्तानी की जुबान पर है। एक लंबे मंथन के बाद आखिरकार वामपंथियों ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। हालांकि समाजवाद के झंडाबरदार मुलायम सिंह यादव ने सरकार को समर्थन देने का फैसला किया है लेकिन क्या सरकार बरकरार रहेगी यह तो सदन में शक्ति परीक्षण के बाद ही तय होगा। अगर सरकार जाती है तो अमेरिका से हुए आणविक समझौते पर आंच जरूर आ जाएगी।
लोकसभा चुनाव अब बहुत दूर नहीं। यह बात वामपंथी अच्छी तरह जानते हैं। अब लोकसभा चुनाव वह सरकार के साथ मिलकर तो लड नहीं सकते। इसलिए सरकार का कार्यकाल पूरा होने तक साथ रहने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। अब कार्यकाल से पहले सरकार का साथ छोडना है तो उसका कारण भी चाहिए। आणविक समझौते से बढिया विकल्प उन्हें मिल भी नहीं सकता था। अब एक अरसे तक बातचीत, चेतावनी और मान मनौवल के बाद उन्हें एक रास्ता तो चुनना ही था सो चुन लिया।
अब बात जरा मुलायम है। सरकार बनी तो यूपीए ने अमर सिंह और मुलायम को पूछा भी नहीं। हालांकि अमर सिंह बिन बुलाए मेहमान की तरह सरकार को समर्थन देने सोनिया गांधी के यहां पहुंचे भी थे। खैर सरकार भी बन गई और वामपंथियों के सहयोग से चलने भी लगी। इस दौरान कई बार समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस पर कई तीखे वार किए। इस दौरान कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को भी अमर सिंह ने नसीहत दे डाली और सोनिया पर भी बरसे। अब ऐसा क्या हो गया कि कांग्रेस समाजवादी पार्टी की हितैसी नजर आने लगी है। और तो और आणविक करार भी देशहित में नजर आने लगा है। कहीं यह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के कोप से बचने का उपाय तो नहीं। कहीं यह अगला लोकसभा चुनाव कांग्रेस और यूपीए घटक के साथ मिलकर लडने का पहला कदम तो नहीं।

Wednesday, July 2, 2008

एक अरसे बाद गुजरा था उसी मोड से मैं

थम गईं सांसे,रुक गई दिल की धडकन।
एक अरसे बाद गुजरा था उसी मोड से मैं।।

जहां पहली बार तुम्हे देखा था।
जहां पहली बार तमसे की थी बात।
जहां पहली बार तुम सकुचाईं थीं।
जहां पहली बार बोलीं थीं तुम।

जहां अक्सर हम मिल ही जाते थे।
जहां पहुंचकर तुम सिकुड जाती थीं।
जहां कुछ देर वक्त ठहर जाता था।
जहां मेरा हर गम निपट जाता था।।

जहां तुमने किया था इकरार कभी।
जहां पूरे हुए थे मेरे ख्वाब सभी।
जहां दौडा था जी भर के खुशी से कभी।
जहां बैठे रहते थे छुपके दोस्त सभी।।

जहां आखिरी बार मिले थे उस दोपहरी में।
जहां आखिरी बार तुम्हें जी भर देखा था।
जहां आखिरी बार चला था साथ तेरे।
जहां आखिरी बार भरी थी गहरी सांस मैंने।।

अब तो यह मोड भी पूछती है मुझसे।
क्यूं छोड कर चली गई तुम मुझको।
अब यहां से गुजरने में डर लगता है।
जैसे इस मोड पर खडी तुम तलाशती हो मुझे।।