Wednesday, October 29, 2008

यह हमारी आस्था का सवाल है

कई दिनों से ब्लाग से दूर रहा। इसके लिए सभी ब्लगर साथियों से क्षमा चाहूंगा। थोडी व्यस्तता रही इन दिनों या यूं कह लें कि फेस्टिवल सीजन ने उलझाए रखा। काम ही अपना ऐसा है। खैर इन दिनों बहुत कुछ ऐसा रहा जिससे हम ही नहीं पूरी दुनिया सकते में रही। आर्थिक मंदी ने पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि अमेरिका से लेकर जापान तक कभी भी ढह सकते हैं। पूंजी का दम दिखा लोगों को। सेंसेक्स ऐसा गिरा कि कईयों को ले गया। आईसीआईसीआई बैंक के दिवालिया होने की अफवाह भी उडी और कामत जी को स्थिति साफ करनी पडी। जेट ने राज ठाकरे के नाम पर 1900 कर्मचारियों को फिर नौकरी पर रखा तो एक बिहारी युवक को सरेआम एनकाउंटर कर दिया गया। अब असल मुददे पर चलते हैं। कई दिनों से दिमाग में एक बात चल रही है। मन में अजीब हलचल है। पेशानी पर बल पडे हुए हैं और मन में ऐसी भडास है कि फट जाने को जी कर रहा है। बाजार आज पूरी तरह से हम पर हावी हो चुका है। आज जो कुछ बाजार चाह रहा है हम वही कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि बाजार मदारी है और हम बंदर। आज हमारी आस्था यह बाजार तय कर रहा है। हमें कैसे पूजा करनी है, त्योहार या पर्व पर क्या करना है क्या नहीं करना यह सब बाजार तय कर रहा है। गरीब का तो कोई धर्म ही नहीं बचा। कोई त्योहार ऐसा नहीं बचा जिसे वह पूरी आस्था से पूरे साजो सामान के साथ मना सके। पुराने रस्म और पुरातन चीजों की जगह बाजार के रेडिमेट आइटमों और नए रस्मों ने ले ली है। चीजें बदल रही हैं बडी तेजी से बाजार के लिए। जगह जगह कुछ ऐसे लोगों को बिठा दिया गया है जो हमे बाजार के हिसाब से आस्था को पूरी करने की सलाह दे रहे हैं। संचार और समाचार के माध्यम भी बाजार के मुताबिक पढा रहे हैं और दिखा रहे हैं। यह एक बुरा संकेत है। अब हमे यह तय करना है कि हमे बाजार के हिसाब से चलना है या खुद के। सवाल जरा कठिन है लेकिन जवाब हमे ढूढना ही होगा।

Sunday, October 12, 2008

कभी इश्क ने जुदा किया कभी इश्क ने मिला दिया

कभी इश्क ने जुदा किया कभी इश्क ने मिला दिया।
कभी इश्क ने हंसा दिया कभी इश्क ने रुला दिया।

पलकों पर जब भी नींद ने रखने चाहे अपने कदम।
नजरों ने तेरी आ के मुझे आहिस्ते से जगा दिया।।

हर रास्ते पर अब तो मुझे मंजिल नजर आने लगी।
तूने हाथ क्या पकडा मेरा हर फासला मिटा दिया।।

जिंदगी कितने रंगों में अब मेरे सामने आने लगी।
बेरंग ख्वाबों में मेरे तूने रंग भरना सीखा दिया।।

कभी इश्क ने जुदा किया कभी इश्क ने मिला दिया।
कभी इश्क ने हंसा दिया कभी इश्क ने रुला दिया।

Thursday, October 9, 2008

रावण तुम्हे जिंदा रहना होगा

रावण तुम जिंदा रहो यूं ही। सालों साल,सदियों तक। ऐसे ही अपने दसों चेहरों के साथ। अगर तुम मर गए तो राम का क्या होगा। सच्चाई का क्या होगा। तुम ही तो वह एकमात्र साक्ष्य हो जो कहता है कि इस धरती पर कभी राम ने अवतार लिया था, इस धरती पर कभी धर्म का अधर्म से युद्ध हुआ था, सच के सामने बुराई का नाश हुआ था। अब राम सेतु को ही ले लो। आज तक उसके अस्तित्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं कल हो सकता है राम के अस्तित्व पर सवाल खडा हो जाए तो जवाब कौन देगा। कौन लोगों को बताएगा कौन सरकार को बताएगा कि राम ने धरती पर अवतार लिया था। इसलिए हे रावण तुम्हारा जिंदा रहना जरूरी है। बेहद जरूरी। हे रावण तुम्हारा जिंदा रहना इसलिए भी जरूरी है कि तुम एक बडे शिक्षक हो इस समाज के लिए, हमारी नई पीढी के लिए अगर तुम्हारा अंत हो गया तो हमारे समाज को रास्ता कौन दिखाएगा हमारी भावी पीढी को सचाई और बुराई का फर्क कौन समझाएगा। आज हममें वो कुबत नहीं रही कि हम अपने बच्चों को सही राह दिखा सकें, आज हम खुद झूठ और बुराई का सहारा ले रहे हैं। इसलिए हे रावण तुम्हारा जिंदा रहना अति आवश्यक है।