रह गए हम बिन आवाज के।
कट गए पर अब परवाज के।
मुख्तलिफ रास्तों ने बांटा हमे।
अपने ही नस्तर ने काटा हमे।
अब राग कोई भी बजता नहीं।
रह गए हम बिन साज के।
कट गए पर अब परवाज के।
रह गए हम बिन आवाज के।
रोज ही जीते रहे रोज मरते रहे।
ख्वाब खोकर हकीकत बुनते रहे।
जिसको देखा नहीं उसे ढूढते रहे।
रह गए यूहीं हम बिन आज के।
कट गए पर अब परवाज के।
रह गए हम बिन आवाज के।
क्यों प्यास सहरा कि बुझती नहीं।
क्यों शाम समंदर पर रुकती नहीं।
क्यों ढूढते रहते हैं हम सितारों में।
हकीकत हम अपने कल के राज के।
कट गए पर अब परवाज के।
रह गए हम बिन आवाज के।
Wednesday, March 25, 2009
कट गए पर अब परवाज के
Friday, March 20, 2009
अब दोस्त भी मिलते हैं तो फासलों के साथ।
जिंदगी कहीं आदत न बिगाड दे अपनी इसलिए।
खुशियां बेचकर अपनी हम दर्द खरीद लेते हैं।
वो कहने लगे तुममे अब वो बात नही रही।
मैने जो देखा तो उनकी निगाहें ही झुकी थीं।।
अब बेचने को अपने पास कुछ भी बचा नहीं।
बस ख्वाब हैं थोडे बहुत बोले खरीदोगे।।
अब दोस्त भी मिलते हैं तो फासलों के साथ।
कहीं उम्र साथ अपने दूरियां लेकर तो नहीं चलती।।
Saturday, March 14, 2009
कभी फुर्सत मिले तो पढ लेना
नई नस्लों ने अब सीख ली है जी हुजूरी।
अब आइंदा से यहां इनकलाब नहीं होगा।
जी तो ऊब गया है इस शहर से मगर।
किसी के वादे ने हमें रोक रखा है।।
टुकडे टुकडे कर दिए ख्वाबों को सभी।
वक्त जो बदलेगा तो जोडके उन्हें देखूंगा।
बडे करीब से लिखा है जिंदगी को।
कभी फुर्सत मिले तो पढ लेना।।
तेरे हाथों में ढूंढता रहता हूं।
जानता हूं कि तू मेरी किस्मत है।।
अब तो आ जाओ कि शाम ढल आई।
बिन तेरे ये चराग भी जलेंगे कहां।।
Friday, March 13, 2009
इस शहर में अब कोई भी दस्तूर नहीं रहा
आंखों में शर्म चेहरे पर अब नूर नहीं रहा।
इस शहर में अब कोई भी दस्तूर नहीं रहा।।
हर कोई चिल्ला रहा है एक दूसरे पर अब।
लगता है शहर में कोई भी मजबूर नहीं रहा।।
इन फासलों से कह दो अब समेट लें खुद को।
कदमों से रास्ता अब कोई भी दूर नहीं रहा।।
हर कोई देखता है उसे हिकारत की नजर से।
उस शख्स का अब यहां कोई मंसूर नहीं रहा।।
आंखों में शर्म चेहरे पर अब नूर नहीं रहा।
इस शहर में अब कोई भी दस्तूर नहीं रहा।।