Monday, March 31, 2008
राखी सावंत बनीं इस बार की पहली अप्रैल फूल
Monday, March 24, 2008
हंसती आंखों में भी
अश्कों से ही समंदर भर जाएंगे बैठो तो जरा तन्हाई में।।
क्या रखा है आखिर जमीन ओ जात की लडाई में।।
वफा का हर रंग देख लिया हमने तेरी जुदाई में।।
या खुदा वो छुप कर बैठी रही कहीं तेरी खुदाई में।।
Friday, March 21, 2008
सभी देशवासियों को होली मुबारक
Thursday, March 20, 2008
होली भी मेड इन चाइना
Wednesday, March 12, 2008
Tuesday, March 11, 2008
वाकई चक दिया इंडिया
भारतीय हाकी का सबसे काला दिन
हाकी में भारत ने किया शर्मशार
शर्मशार हुई भारतीय हाकी
हाय रे हाकी
देश के तमाम बडे अखबारों की सुबह आज इस हेडलाइंस के साथ हुई। बडे बडे हेडिंग और इतनी थू थू आज पहली बार हाकी को लेकर न्यूज पेपरों से लेकर न्यूज चैनलों तक में देखने को मिली। हर कोई अचरज के साथ यही कह रहा है कि देश का राष्ट्रीय खेल गर्क में चला गया। अस्सी साल के सुनहरे इतिहास में हम पहली बार इतने शर्मशार हुए। हाकी महासंघ के प्रमुख केपीएस गिल को बिना देरी के इस्तीफा दे देना चाहिए। मगर कोई भी जिम्मेदार नागरिक यह सोचने की जहमत नहीं उठा रहा कि आखिर इस शर्मनाक हालत के लिए क्या वह जिम्मेदार नहीं। भारतीय समाज जिम्मेदार नहीं। पूंजीवाद जिम्मेदार नहीं। क्रिकेट के प्रति दिवानगी जिम्मेदार नहीं। गरमागरम खाबरों को बेचने वाला मीडिया जिम्मेदार नहीं।आज तमाम अखबारों में हाकी की हार को जितनी तरजीह दी गई है मुझे नहीं लगता हाकी की जीत पर कभी इतनी जगह दी गई थी। सच तो यह है कि चक दे इंडिया का नारा क्रिकेट के लिए हम दे तो सकते हैं लेकिन हाकी के लिए बोल भी नहीं सकते। हमने क्रिकेट को ही अपना नेशनल गेम मान लिया है। यह बात और है कि हम उसे संविधान में स्थान नहीं दे सकते। यही हाल देश के चौथे स्तंभ मीडिया का भी है। मीडिया ने कभी हाकी को इतनी तरजीह ही नहीं दी कि देश का यह खेल देश की नई नस्ल की नब्ज तक पहुंच सके। अगर आप ने हाकी को अपना देश खेल माना ही नहीं तो केपीएस गिल से इस्तीफा मांगने का मतलब समझ से परे है। आज हाकी खिलाडी भी समझ गए हैं कि खेलने से कुछ मिलने वाला तो है नहीं। तो जान देने से फायदा क्या। आप सब को याद होगा पीछले कुछ माह पहले जब भारतीय हाकी टीम गोल्ड मेडल जीतकर जब स्वदेश लौटी तो इन हाकी खिलाडियों को न के बराबर इनाम या सम्मान दिया गया। इसी बीच धोनी के धूरंधरों ने 20 ट्वेंटी का क्रिकेट विश्व कप जीत लिया। यह टीम देश लौटी तो अभूतपूर्व स्वागत के साथ मुंबई में टीम का जबरदस्त सम्मान किया गया। यह बात हाकी खिलाडियों को बुरी लगी तो उन्होंने अपना रोष जताया और सम्मान की मांग की। तब जाकर सरकारें जागीं और उनको भी कुछ दे दिया। अब जिस देश में क्रिकेट को बिन मांगे सब कुछ मिल रहा हो और देश के राष्ट्रीय खेल के जवानों को अपना सम्मान मांगना पड रहा हो उस देश में यह दिन तो आना ही था। अब इस पर अफसोस करने से क्या फायदा। हाकी को आप और हम बचा नहीं सकते। क्योंकि इसमें कोई बडा पूंजीपती अपना हाथ नहीं लगाएगा, इसकी फ्रेंचाइजी नहीं लेगा। कोई इसे स्पांसर नहीं करेगा और न ही कोई मीडिया इसकी खबर देगा और न ही हम इसे अपना राष्ट्रीय खेल समझेंगे।
वाकई में चक दिया इंडिया
अबरार अहमद
Wednesday, March 5, 2008
क्या यह नौटंकी है
वक्त बदल रहा है और लोग भी। अखबार बदल रहे हैं और न्यूज चैनल भी। यह बदलाव कितना सही है और कितना गलत यह तो वक्त बताएगा। लेकिन संकेत कुछ ठीक नहीं। खबर को दिलचस्प बनाने की जो नई इबारत आज के पत्रकार लिख रहे हैं या दिखा रहे हैं वह पत्रकारिता को कहां ले जाएगी कुछ नहीं कहा जा सकता। अभी हाल के ताजा उदाहरणों से तो यही लगता है।अभी कुछ दिनों पहले जब देश के वित्त मंत्री ने आम बजट पेश किया तो एक न्यूज चैनल के कुछ एंकरों ने गांव और देहात के लोगों को बजट में क्या मिला यह बताने के लिए गवंइया और शहरी जनता का वेश और बोली धारण कर पूरी एक नौटंकी की तरह बजट को लोगों तक पहुंचाया। अभी आज की ही बात है उसी चैनल पर एक एंकर भारतीय टीम के कपडे पहने हुए नजर आ रहा था। उसके हाथ में बल्ला था और पैरों पर पैड बंधा था साथ ही वह गलब्स भी पहने हुए था। एंकरिंग का यह अंदाज कुछ अलग था इसलिए स्वभाविक रूप से मेरी नजर उस ओर दौड गई। देखा तो जनाब बल्ले को हिला हिलाकर भारतीय टीम की आस्ट्रेलिया में हुई जीत का बखान कर रहे थे। खैर यह तो रहा मुददा। अब सवाल यह उठता है कि कल क्या कोई हत्यारा पांच लोगों का खून कर देगा तो क्या न्यूज चैनल उस पूरी वारदात की नौटंकी अपने इस एंकर से कराएंगे। मेरे हिसाब से अगर जनता को बजट और क्रिकेट टीम की जीत वास्तविक जानकारी देने के लिए अगर कोई चैनल ऐसा कर रहा है तो वह अपने व्यूवर को हत्या की इस वारदात की वास्तविक जानकारी देने के लिए अपने एंकर से उस पूरे घटना की नौटंकी भी करवाएगा। इसी तरह रेप और अन्य घटनाओं की जानकारी पूरे वास्तविकता के साथ दी जाएगी। तब हमारे समाज पर इसका क्या असर होगा। सवाल यह भी है कि क्या देश की इलेक्ट्रानिक मीडिया नौटंकी मीडिया की तरफ नहीं जा रही? इसका नतीजा क्या होगा। इसपर निश्चय ही सोचने की जरूरत है। हालांकि आज भी कई न्यूज चैनल ऐसे हैं जो अपना स्तर बनाए हुए हैं।
अबरार अहमद
वह पथिक है
है घनघोर अंधेरा मगर
वह पथिक चला जा रहा है।
न कोई आस है न कोई पास है।
न मंजिल के मिलने की आस है।।
है घनघोर अंधेरा मगर
वह पथिक चला जा रहा है।।
पसीने से लतपथ है काया
भूख ने छीन लिया है अपना साया।
कर्म वो अपना किए जा रहा है।
वह पथिक है चला जा रहा है।।
जो भी मिलता है इस रास्ते में।
वो करता है उडने की बातें।
और दिखाता है सपनों की दुनिया।
पर हकीकत तो इससे परे है।
बस रास्ता ही संग चला जा रहा है।
कर्म वह अपना किए जा रहा है
वह पथिक है इसलिए चला जा रहा है।
वह पथिक है इसलिए........
अबरार अहमद
Tuesday, March 4, 2008
मार लिया मैदान
आस्ट्रेलिया को उसी की जमीन पर हरा कर हमने मार लिया मैदान। ट्राफी अपने खाते में। भज्जी ने मैच जीतने के बाद जो भंगडा डाला वह निश्चय ही जीत का जश्न और कंगारूओं का घमंड तोडने वाला था।
जीत का जश्न मनाइये।
अबरार अहमद
Sunday, March 2, 2008
सोचता हूं तो
सोचता हूं तो अजीब लगता है।
वो दूर है पर करीब लगता है।।
सुकुनोचैन से जीता है वो आदमी लेकिन
शक्ल से हमेशा गरीब लगता है।।
उम्र भर जिसको इत्तफाक समझा हमने।
वो कायदे से अब नसीब लगता है।।
फासला रख के जिससे चलते रहे हर कदम।
आज वो ही अपना रकीब लगता है।।
जिंदगी भर जिसे समझने की कोशिश की।
अपने जेहन को वो ही अदीब लगता है।
अबरार अहमद