Monday, March 31, 2008

राखी सावंत बनीं इस बार की पहली अप्रैल फूल


इस अप्रैल की पहली ब्रेकिंग न्यूज। राखी सावंत को निर्देशक राकेश रोशन ने इस बार के अप्रैल का पहला फूल बना डाला। ठीक पहली अप्रैल से एक दिन पहले राकेश रोशन ने राखी को चौंकाते हुए अपनी अगली फिल्म क्रेजी फोर से राखी का तेजी से पापूलर हो रहा आइटम सांग देखता है क्या हटा दिया। अब राखी देश की मीडिया के सामने अपना रोना रो रही हैं। साथ ही हमारी हाईटेक मीडिया को एक और मसाला मिल गया है। अब देखिए यह कहां कहां लगाया जाता है। लेकिन यह बात तो तय हो गई कि राकेश रोशन उडती चिडिया के पर कतरना बाखूबी जानते हैं। वह भी मौका और दस्तूर देखकर। आखिर वह पुराने खिलाडी जो ठहरे।

Monday, March 24, 2008

हंसती आंखों में भी


हंसती आंखों में भी गम पलते हैं पर कौन जाए इतनी गहराई में।
अश्कों से ही समंदर भर जाएंगे बैठो तो जरा तन्हाई में।।

जिंदगी चार दिन की है इसे हंस कर जी लो।
क्या रखा है आखिर जमीन ओ जात की लडाई में।।

तुमसे मिलने की चाहत हमे कहां कहां न ले गई।
वफा का हर रंग देख लिया हमने तेरी जुदाई में।।

जिस सुकून के लिए भटकता रहा दर दर अबरार।
या खुदा वो छुप कर बैठी रही कहीं तेरी खुदाई में।।

Friday, March 21, 2008

सभी देशवासियों को होली मुबारक


सभी जनों को होली की बहुत बहुत बधाईयां। जमकर रंग खेलें और सबको गले लगाएं। यह पर्व खुशी और भाईचारे का है। इसलिए सारे गिले शिकवे दूर कर एक दूसरे को रंग लगाएं, बडों से उनका आशिर्वाद लें और छोटों को प्यार दें।एक बार फिर से सभी भाइयों को होली की बधाई।

Thursday, March 20, 2008

होली भी मेड इन चाइना


होली का सुरूर हम सब पर छाया है। हर ओर रंग बरस रहे हैं। बाजार रंगीन हो गए हैं और हमारी सोच भी। सब कुछ अपने हिसाब से चल रहा है। जेबें भी हमारी गरम हैं। कुल मिलाकर टोटल मस्ती है। खैर मुददे की बात पर आते हैं। हमारे एक मित्र हैं। होली पर घर जा रहे थे, सो भांजे के लिए पिचकारी खरीदना चाहते थे। दोनों जने बाजार गए। रंग और पिचकारी की दुकान दिखी तो पहुंच गए वहां। दुकानदार ने कुछ पिचकारियां दुकान के आगे टांग रखी थीं और कुछ एक गत्ते में भरी पडी थीं। मैने गत्ते से कुछ पिचकारियां निकालीं और देखने लगा। आश्चर्य तब हुआ जब पैकिंग के उपर मेड इन चाइना पढा। मैंने दुकानदार से पूछा आपके यहां क्या सारी पिचकारियां चाइना मेड हैं। उसने हां में जवाब दिया। साथ में दलील भी दी कि हमारे यहां तो केवल वही एक घीसी पिटी पंप वाली पिचकारी बनती है, जबकि चीन की बनी पिचकारियों पर हजारों वैराइटियां मौजूद हैं। साथ ही इनकी कीमत भी काफी कम है। एक और बात यह कि इन पिचकारियों को बच्चे होली के बाद भी खिलौनों के तौर पर खेल सकते हैं। इसके अलावा चाइना मेड रंग और चाइना के गुब्बारे इस बार हमारे बाजारों में होली खेल रहे हैं। इससे पहले दीपावली पर चाइना मेड लाइट झालर और भगवान गणेश से लेकर माता लक्ष्मी तक चीन हमे मुहैया करा रहा है। यही नहीं देश की साइकिल इंडस्ट्री भी चीन से दुखी है। देश में दिनोंदिन स्टील की कीमतें बढती जा रही हैं उधर चीन सस्ती साइकिलें देश में सप्लाई कर रहा है।वह दिन दूर नहीं जब आपके बाजारों से मेड इन इंडिया लापता होगा। हर चीज मिलेगी मगर मेड इन चाइना की। हमारे उद्योग दम तोड चुके होंगे तब चीन हमारी कमर तोडेगा। फिर हम कुछ नहीं कर पाएंगे। अभी तो थोडे सस्ते के चक्कर में हम चीन को अपने घर की चौकठ दिखा रहे हैं। वह वक्त भी आएगा जब चीन हमारे बेडरूम में होगा और हम घर के बाहर। सोचने की जरूरत है।

सरकार की भूमिका पर सवाल

इस पूरे मसले पर सरकार की भूमिका पर सवाल खडा होता है। जिस पैमाने पर चाइना के माल हमारे देश के बाजारों में बिक रह हैं उससे एक बात तो तय है कि यह माल चीन से तस्करी के माध्यम से नहीं आ रहा। अगर तस्करी के माध्यम से नहीं आ रही तो सरकार इसकी मंजूरी दे रही है और बाकायदा कस्टम डयूटी लेकर चाइना मेड सामानों को इस देश में बेचने में मदद कर रही है। इससे साफ है कि सरकार देश के उद्योगों पर ताला लगवाने में अहम भूमिका अदा कर रही है। लोगों को यह बात समझनी होगी। नहीं तो हम अपने ही देश में पराए हो जाएंगे। अपने ही बाजार से बेदखल भी। फिर अरूणांचल भी हमारा नहीं रहेगा और दिल्ली भी हमसे जाएगी। सोचने की जरूरत है।

आप सब इस मुददे पर अपनी राय दें।

Monday, March 17, 2008


क्या वाकई जनाब सो रहे हैं। मगर इनका शरीर कहाँ है। बूझो तो जानें।

Wednesday, March 12, 2008

अब अंधेरे देने लगे हैं सुकून

अब अंधेरे देने लगे हैं सुकून मुझको।

न जाने कब दूर मुझसे यह रोशनी होगी।।

तमाम लोगों के लिए तमाम किरदार जीया।

क्या अपने लिए भी कोई जिंदगी होगी।।

या खुदा अब लोग कहने लगे मुझे काफिर।

अब इससे बढ कर क्या तेरी बंदगी होगी।।

अपने पसीने से सींचा है इस जमीं को हमने।

अब इस सहरा में भी पूरी नमी होगी।।

Tuesday, March 11, 2008

वाकई चक दिया इंडिया

भारतीय हाकी का सबसे काला दिन
हाकी में भारत ने किया शर्मशार
शर्मशार हुई भारतीय हाकी
हाय रे हाकी

देश के तमाम बडे अखबारों की सुबह आज इस हेडलाइंस के साथ हुई। बडे बडे हेडिंग और इतनी थू थू आज पहली बार हाकी को लेकर न्यूज पेपरों से लेकर न्यूज चैनलों तक में देखने को मिली। हर कोई अचरज के साथ यही कह रहा है कि देश का राष्ट्रीय खेल गर्क में चला गया। अस्सी साल के सुनहरे इतिहास में हम पहली बार इतने शर्मशार हुए। हाकी महासंघ के प्रमुख केपीएस गिल को बिना देरी के इस्तीफा दे देना चाहिए। मगर कोई भी जिम्मेदार नागरिक यह सोचने की जहमत नहीं उठा रहा कि आखिर इस शर्मनाक हालत के लिए क्या वह जिम्मेदार नहीं। भारतीय समाज जिम्मेदार नहीं। पूंजीवाद जिम्मेदार नहीं। क्रिकेट के प्रति दिवानगी जिम्मेदार नहीं। गरमागरम खाबरों को बेचने वाला मीडिया जिम्मेदार नहीं।आज तमाम अखबारों में हाकी की हार को जितनी तरजीह दी गई है मुझे नहीं लगता हाकी की जीत पर कभी इतनी जगह दी गई थी। सच तो यह है कि चक दे इंडिया का नारा क्रिकेट के लिए हम दे तो सकते हैं लेकिन हाकी के लिए बोल भी नहीं सकते। हमने क्रिकेट को ही अपना नेशनल गेम मान लिया है। यह बात और है कि हम उसे संविधान में स्थान नहीं दे सकते। यही हाल देश के चौथे स्तंभ मीडिया का भी है। मीडिया ने कभी हाकी को इतनी तरजीह ही नहीं दी कि देश का यह खेल देश की नई नस्ल की नब्ज तक पहुंच सके। अगर आप ने हाकी को अपना देश खेल माना ही नहीं तो केपीएस गिल से इस्तीफा मांगने का मतलब समझ से परे है। आज हाकी खिलाडी भी समझ गए हैं कि खेलने से कुछ मिलने वाला तो है नहीं। तो जान देने से फायदा क्या। आप सब को याद होगा पीछले कुछ माह पहले जब भारतीय हाकी टीम गोल्ड मेडल जीतकर जब स्वदेश लौटी तो इन हाकी खिलाडियों को न के बराबर इनाम या सम्मान दिया गया। इसी बीच धोनी के धूरंधरों ने 20 ट्वेंटी का क्रिकेट विश्व कप जीत लिया। यह टीम देश लौटी तो अभूतपूर्व स्वागत के साथ मुंबई में टीम का जबरदस्त सम्मान किया गया। यह बात हाकी खिलाडियों को बुरी लगी तो उन्होंने अपना रोष जताया और सम्मान की मांग की। तब जाकर सरकारें जागीं और उनको भी कुछ दे दिया। अब जिस देश में क्रिकेट को बिन मांगे सब कुछ मिल रहा हो और देश के राष्ट्रीय खेल के जवानों को अपना सम्मान मांगना पड रहा हो उस देश में यह दिन तो आना ही था। अब इस पर अफसोस करने से क्या फायदा। हाकी को आप और हम बचा नहीं सकते। क्योंकि इसमें कोई बडा पूंजीपती अपना हाथ नहीं लगाएगा, इसकी फ्रेंचाइजी नहीं लेगा। कोई इसे स्पांसर नहीं करेगा और न ही कोई मीडिया इसकी खबर देगा और न ही हम इसे अपना राष्ट्रीय खेल समझेंगे।
वाकई में चक दिया इंडिया
अबरार अहमद

Wednesday, March 5, 2008

क्या यह नौटंकी है

वक्त बदल रहा है और लोग भी। अखबार बदल रहे हैं और न्यूज चैनल भी। यह बदलाव कितना सही है और कितना गलत यह तो वक्त बताएगा। लेकिन संकेत कुछ ठीक नहीं। खबर को दिलचस्प बनाने की जो नई इबारत आज के पत्रकार लिख रहे हैं या दिखा रहे हैं वह पत्रकारिता को कहां ले जाएगी कुछ नहीं कहा जा सकता। अभी हाल के ताजा उदाहरणों से तो यही लगता है।अभी कुछ दिनों पहले जब देश के वित्त मंत्री ने आम बजट पेश किया तो एक न्यूज चैनल के कुछ एंकरों ने गांव और देहात के लोगों को बजट में क्या मिला यह बताने के लिए गवंइया और शहरी जनता का वेश और बोली धारण कर पूरी एक नौटंकी की तरह बजट को लोगों तक पहुंचाया। अभी आज की ही बात है उसी चैनल पर एक एंकर भारतीय टीम के कपडे पहने हुए नजर आ रहा था। उसके हाथ में बल्ला था और पैरों पर पैड बंधा था साथ ही वह गलब्स भी पहने हुए था। एंकरिंग का यह अंदाज कुछ अलग था इसलिए स्वभाविक रूप से मेरी नजर उस ओर दौड गई। देखा तो जनाब बल्ले को हिला हिलाकर भारतीय टीम की आस्ट्रेलिया में हुई जीत का बखान कर रहे थे। खैर यह तो रहा मुददा। अब सवाल यह उठता है कि कल क्या कोई हत्यारा पांच लोगों का खून कर देगा तो क्या न्यूज चैनल उस पूरी वारदात की नौटंकी अपने इस एंकर से कराएंगे। मेरे हिसाब से अगर जनता को बजट और क्रिकेट टीम की जीत वास्तविक जानकारी देने के लिए अगर कोई चैनल ऐसा कर रहा है तो वह अपने व्यूवर को हत्या की इस वारदात की वास्तविक जानकारी देने के लिए अपने एंकर से उस पूरे घटना की नौटंकी भी करवाएगा। इसी तरह रेप और अन्य घटनाओं की जानकारी पूरे वास्तविकता के साथ दी जाएगी। तब हमारे समाज पर इसका क्या असर होगा। सवाल यह भी है कि क्या देश की इलेक्ट्रानिक मीडिया नौटंकी मीडिया की तरफ नहीं जा रही? इसका नतीजा क्या होगा। इसपर निश्चय ही सोचने की जरूरत है। हालांकि आज भी कई न्यूज चैनल ऐसे हैं जो अपना स्तर बनाए हुए हैं।
अबरार अहमद

वह पथिक है

है घनघोर अंधेरा मगर
वह पथिक चला जा रहा है।
न कोई आस है न कोई पास है।
न मंजिल के मिलने की आस है।।
है घनघोर अंधेरा मगर
वह पथिक चला जा रहा है।।

पसीने से लतपथ है काया
भूख ने छीन लिया है अपना साया।
कर्म वो अपना किए जा रहा है।
वह पथिक है चला जा रहा है।।

जो भी मिलता है इस रास्ते में।
वो करता है उडने की बातें।
और दिखाता है सपनों की दुनिया।
पर हकीकत तो इससे परे है।
बस रास्ता ही संग चला जा रहा है।
कर्म वह अपना किए जा रहा है
वह पथिक है इसलिए चला जा रहा है।
वह पथिक है इसलिए........
अबरार अहमद

Tuesday, March 4, 2008

मार लिया मैदान

आस्ट्रेलिया को उसी की जमीन पर हरा कर हमने मार लिया मैदान। ट्राफी अपने खाते में। भज्जी ने मैच जीतने के बाद जो भंगडा डाला वह निश्चय ही जीत का जश्न और कंगारूओं का घमंड तोडने वाला था।
जीत का जश्न मनाइये।
अबरार अहमद

Sunday, March 2, 2008

सोचता हूं तो

सोचता हूं तो अजीब लगता है।
वो दूर है पर करीब लगता है।।

सुकुनोचैन से जीता है वो आदमी लेकिन
शक्ल से हमेशा गरीब लगता है।।

उम्र भर जिसको इत्तफाक समझा हमने।
वो कायदे से अब नसीब लगता है।।

फासला रख के जिससे चलते रहे हर कदम।
आज वो ही अपना रकीब लगता है।।

जिंदगी भर जिसे समझने की कोशिश की।
अपने जेहन को वो ही अदीब लगता है।

अबरार अहमद