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लफ्ज
Monday, March 17, 2008
क्या वाकई जनाब सो रहे हैं। मगर इनका शरीर कहाँ है। बूझो तो जानें।
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खत्म हो रहा है वक्त
कुछ कहो ना तुम भी
केवल तम्हारे लिए
हमसे होकर गुजरे लफ्ज
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राखी सावंत बनीं इस बार की पहली अप्रैल फूल
हंसती आंखों में भी
सभी देशवासियों को होली मुबारक
होली भी मेड इन चाइना
क्या वाकई जनाब सो रहे हैं। मगर इनका शरीर कहाँ है। ...
अब अंधेरे देने लगे हैं सुकून
वाकई चक दिया इंडिया
क्या यह नौटंकी है
वह पथिक है
मार लिया मैदान
सोचता हूं तो
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अबरार अहमद
India
जिंदगी के तमाम उतार चढाव से गुजरते हुए इसे समझने की कोशिश कर रहा हूं। वैसे पेशे से पत्रकार हूं।
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मैं हूं भडासी
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