Wednesday, March 5, 2008

क्या यह नौटंकी है

वक्त बदल रहा है और लोग भी। अखबार बदल रहे हैं और न्यूज चैनल भी। यह बदलाव कितना सही है और कितना गलत यह तो वक्त बताएगा। लेकिन संकेत कुछ ठीक नहीं। खबर को दिलचस्प बनाने की जो नई इबारत आज के पत्रकार लिख रहे हैं या दिखा रहे हैं वह पत्रकारिता को कहां ले जाएगी कुछ नहीं कहा जा सकता। अभी हाल के ताजा उदाहरणों से तो यही लगता है।अभी कुछ दिनों पहले जब देश के वित्त मंत्री ने आम बजट पेश किया तो एक न्यूज चैनल के कुछ एंकरों ने गांव और देहात के लोगों को बजट में क्या मिला यह बताने के लिए गवंइया और शहरी जनता का वेश और बोली धारण कर पूरी एक नौटंकी की तरह बजट को लोगों तक पहुंचाया। अभी आज की ही बात है उसी चैनल पर एक एंकर भारतीय टीम के कपडे पहने हुए नजर आ रहा था। उसके हाथ में बल्ला था और पैरों पर पैड बंधा था साथ ही वह गलब्स भी पहने हुए था। एंकरिंग का यह अंदाज कुछ अलग था इसलिए स्वभाविक रूप से मेरी नजर उस ओर दौड गई। देखा तो जनाब बल्ले को हिला हिलाकर भारतीय टीम की आस्ट्रेलिया में हुई जीत का बखान कर रहे थे। खैर यह तो रहा मुददा। अब सवाल यह उठता है कि कल क्या कोई हत्यारा पांच लोगों का खून कर देगा तो क्या न्यूज चैनल उस पूरी वारदात की नौटंकी अपने इस एंकर से कराएंगे। मेरे हिसाब से अगर जनता को बजट और क्रिकेट टीम की जीत वास्तविक जानकारी देने के लिए अगर कोई चैनल ऐसा कर रहा है तो वह अपने व्यूवर को हत्या की इस वारदात की वास्तविक जानकारी देने के लिए अपने एंकर से उस पूरे घटना की नौटंकी भी करवाएगा। इसी तरह रेप और अन्य घटनाओं की जानकारी पूरे वास्तविकता के साथ दी जाएगी। तब हमारे समाज पर इसका क्या असर होगा। सवाल यह भी है कि क्या देश की इलेक्ट्रानिक मीडिया नौटंकी मीडिया की तरफ नहीं जा रही? इसका नतीजा क्या होगा। इसपर निश्चय ही सोचने की जरूरत है। हालांकि आज भी कई न्यूज चैनल ऐसे हैं जो अपना स्तर बनाए हुए हैं।
अबरार अहमद

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