आज फिर खोल दिया उसका लिफाफा मैंने।
आज फिर अपने लडकपन पे नाज किया।।
आज फिर टकरा गया चलते चलते खंभे से।
आज फिर लगा कि किसी ने याद किया।।
तेरे टोकने का अंदाज गुम न हो जाए जेहन से।
आज फिर वही काम तेरे बाद किया।।
Tuesday, June 28, 2011
आज फिर वही काम तेरे बाद किया
Saturday, March 26, 2011
बिल गेट्स से ही कुछ सीख ले लो
कुछ दिनों पहले एक साथी की मेल पढी। यह मेल स्वीस बैंक में भारतीयों के द्वारा जमा की गई ब्लैक मनी पर आधारित थी। मजमून कुछ यूं था कि स्वीस बैंक में भारतीयों के 280 लाख करोड रुपये जमा हैं। यह द्वारा बैंक के ही एक अधिकारी की ओर से मेल में किया गया था। साथ ही कुछ आंकडों का भी जिक्र था कि अगर यह रकम भारत के विकास में लगा दी जाए तो देश का कितना विकास हो सकता है मसलन देश का हर गांव राजधानी से फोर लेन से जुड जाएगा वगैरह वगैरह। अब सवाल यह है कि इस मेल में कितनी सचाई है। एक मिनट अगर यह मान लेते हैं कि इस मेल में लिखी सब बातें सही हैं तो दिमाग झन्ना जाता है। भ्रष्टाचार या अवैध रूप से कमाई गई इतनी बडी रकम कुछ लोगों ने दबा रखा है,जबिक आज भी देश का एक बडा तबका एक जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है। गरीबी और बेकारी अब भी इस देश की बडी समस्या है।
यह तो रहा तस्वीर का एक पहलू। अब जरा इसके दूसरे पहलू पर नजर डालते हैं। कभी दुनिया के सबसे अमीर आदमी रहे बिल गेट्स को भला कौन नहीं जानता होगा। खबर यह नहीं है कि वह अब दुनिया के सबसे अमीर आदमी नहीं रहे। खबर यह है कि वह इन दिनों भारत में हैं। दो दिन पहले अखबार में उनकी तस्वीर देखी, बिहार के किसी गांव में बैठे थे। बेलौस, किसी भारतीय कि तरह चिंतामुक्त, साथ में उनकी बीवी भी थीं। जमीन पर पालथी मारकर बैठे बिल गेट्स के चेहरे पर इतना सुकून था कि उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता था। वह अपने फाउंडेशन की ओर से किए जा रहे कार्यों की जानकारी दानापुर की महिलाओं से ले रहे थे।
अब कुछ पते कि बात कर लेते हैं। क्या बिल गेट्स को पैसों की अहमियत नहीं पता। अगर यह सवाल हम करें तो हमसे बडा बेवकूफ कोई नहीं होगा। एक वाकया और जेहन में आ गया तो बता दूं । बात कई साल पुरानी है। अखबार में एक आर्टिकल छपा था। बिल गेट्स पर। उसमें उनसे जुडी कुछ जरूरी बातें थीं। जैसे उनका एक सेकेंड कितना किमती है या यूं कहें कि कितने डालर का है। यह पढकर उस समय मैं हैरान था। वह उस समय दुनिया के सबसे रईस आदमी थे। सच बात तो यह है कि गेट्स को पैसों की अहमियत बखूबी पता है और वह जानते हैं कि इसका सबसे बेहतर इस्तेमाल कैसे और कहां करना है। काश यह बात उन सफेदपोश और भ्रष्ट भारतीयों को पता चल जाती। तब शायद बिल गेट्स को यूपी और बिहार आने की जरूरत नहीं पडती।
Wednesday, August 4, 2010
अब चहकने लगा है अयान
वक्त के साथा कई नए एहसास मुझे छू रहे हैं। रूबरू करा रहे हैं मुझे एक अनोखे रोमांच से। पिता होने की जिम्मेदारियों के बीच एक नन्हा बच्चा मुझमें हिलोरें ले रहा है। और रोज नन्हे अयान से जी भर के खेलता भी है। अब अयान भी चहकने लगा है। अभी बोलता नहीं लेकिन उसकी हंसी वो सब कह जाती है, जो मैं उससे सुनना चाहता हूं। वो देखता है तो ऐसा लगता है पूरी दुनिया की खुशियां मुझे हसरत भरी निगाहों से देख रही हैं। इस एहसास को बयां करना भी मुश्किल है। खैर जी भर के जी रहा हूं मैं अयान के बचपन को। खुदा से यही दुआ है कि यह नन्हा फरिश्ता हमेशा यूं ही चहकता रहे। आमीन।
Saturday, February 27, 2010
Saturday, April 11, 2009
जहां नींव हो वहां इतनी नमी अच्छी नहीं
अब तक इस ब्लाग पर जो कुछ भी लिखा गया है वह मेरे जेहन की उपज है। लेकिन आज यहां किसी और को जगह दे कर मैं यह परंपरा तोड रहा हूं और इसके पीछे जो कारण है वह मैं आप सबसे बांटना जरूर चाहूंगा। कल मेरी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई जो पहले पहल तो बिल्कुल साधारण सा लगा लेकिन कुछ समय साथ बैठकर बातें जो हुईं तो एहसास हुआ कि यह शख्श वाकई में खास है। वो ऐसे कि उसके पास साहित्य की इतनी अच्छी समझ और जानकारी थी कि मैं तो बस उसे सुनता ही रह गया। जी तो कर रहा था कि उससे वो तमाम जानकारियां ले लूं जो मेरे पहले की हैं। लेकिन वक्त कमबख्त किसका हुआ है जो मेरा होता। और हमने एक दूसरे को फिर मिलने के वादे के साथ अलविदा कह दिया। लेकिन इस मुलाकात के बीच जो दो शेर इस शख्स से सुनाए उन्होंने मुझे झिंझोड कर रख दिया। कल से अब तक वो दोनों शेर मेरे जेहन में कौंध रहे है। यही वजह है कि इन दोनों शेरों को मैं अपने इस ब्लाग पर जगह दे रहा हूं। मुझे यह नहीं मालूम कि यह दोनों शेर किस शाइर के हैं अगर किसी साथी के पास इन दोनों शेरों के और भी लाइनें हों तो मुझको भी जरूर बताएं। वो दोनों शेर इस तरह हैं।
1 लौटकर मां बाप खूब रोए अकेले में।
मिटटी के खिलौने भी सस्ते नहीं थे मेले में।
2 मुनव्वर कभी मां के सामने खुलकर मत रोना।
जहां नींव हो वहां इतनी नमी अच्छी नहीं।।
Thursday, April 2, 2009
हर तरफ शोर है
हर तरफ शोर है।
आदमी कमजोर है।
रूह मिलती नहीं।
सांस चलती नही।
होंट खुलते नहीं।
फिर भी इक जोर है।
हर तरफ शोर है।
आदमी कमजोर है।
गफलतों से घिरा।
आदतों से डरा।
मौत से लडता हुआ।
ये इक कटी डोर है।
हर तरफ शोर है।
आदमी कमजोर है।
खुद में घुटता हुआ।
रोता बिलखता हुआ।
ये बस चला जा रहा।
मंजिल जाने किस ओर है।
हर तरफ शोर है ।
आदमी कमजोर है।।
Wednesday, March 25, 2009
कट गए पर अब परवाज के
रह गए हम बिन आवाज के।
कट गए पर अब परवाज के।
मुख्तलिफ रास्तों ने बांटा हमे।
अपने ही नस्तर ने काटा हमे।
अब राग कोई भी बजता नहीं।
रह गए हम बिन साज के।
कट गए पर अब परवाज के।
रह गए हम बिन आवाज के।
रोज ही जीते रहे रोज मरते रहे।
ख्वाब खोकर हकीकत बुनते रहे।
जिसको देखा नहीं उसे ढूढते रहे।
रह गए यूहीं हम बिन आज के।
कट गए पर अब परवाज के।
रह गए हम बिन आवाज के।
क्यों प्यास सहरा कि बुझती नहीं।
क्यों शाम समंदर पर रुकती नहीं।
क्यों ढूढते रहते हैं हम सितारों में।
हकीकत हम अपने कल के राज के।
कट गए पर अब परवाज के।
रह गए हम बिन आवाज के।
Friday, March 20, 2009
अब दोस्त भी मिलते हैं तो फासलों के साथ।
जिंदगी कहीं आदत न बिगाड दे अपनी इसलिए।
खुशियां बेचकर अपनी हम दर्द खरीद लेते हैं।
वो कहने लगे तुममे अब वो बात नही रही।
मैने जो देखा तो उनकी निगाहें ही झुकी थीं।।
अब बेचने को अपने पास कुछ भी बचा नहीं।
बस ख्वाब हैं थोडे बहुत बोले खरीदोगे।।
अब दोस्त भी मिलते हैं तो फासलों के साथ।
कहीं उम्र साथ अपने दूरियां लेकर तो नहीं चलती।।
Saturday, March 14, 2009
कभी फुर्सत मिले तो पढ लेना
नई नस्लों ने अब सीख ली है जी हुजूरी।
अब आइंदा से यहां इनकलाब नहीं होगा।
जी तो ऊब गया है इस शहर से मगर।
किसी के वादे ने हमें रोक रखा है।।
टुकडे टुकडे कर दिए ख्वाबों को सभी।
वक्त जो बदलेगा तो जोडके उन्हें देखूंगा।
बडे करीब से लिखा है जिंदगी को।
कभी फुर्सत मिले तो पढ लेना।।
तेरे हाथों में ढूंढता रहता हूं।
जानता हूं कि तू मेरी किस्मत है।।
अब तो आ जाओ कि शाम ढल आई।
बिन तेरे ये चराग भी जलेंगे कहां।।
Friday, March 13, 2009
इस शहर में अब कोई भी दस्तूर नहीं रहा
आंखों में शर्म चेहरे पर अब नूर नहीं रहा।
इस शहर में अब कोई भी दस्तूर नहीं रहा।।
हर कोई चिल्ला रहा है एक दूसरे पर अब।
लगता है शहर में कोई भी मजबूर नहीं रहा।।
इन फासलों से कह दो अब समेट लें खुद को।
कदमों से रास्ता अब कोई भी दूर नहीं रहा।।
हर कोई देखता है उसे हिकारत की नजर से।
उस शख्स का अब यहां कोई मंसूर नहीं रहा।।
आंखों में शर्म चेहरे पर अब नूर नहीं रहा।
इस शहर में अब कोई भी दस्तूर नहीं रहा।।
Wednesday, February 4, 2009
क्यूं साहेब से फिजूल के सवाल करते हो
बुरे वक्त में मुस्कुराने की बात करते हो।
नए दौर में गुजरे जमाने की बात करते हो।।
जबानदराजी का वक्त गुम हो गया कहीं।
क्यूं साहेब से फिजूल के सवाल करते हो।।
अपनी ही गलतियों की सजा भोग रहे हो तुम।
क्यूं पडोसी की किस्मत का मलाल करते हो।।
अब आडत डाल लो कत्ल होने की रोज रोज।
क्योंकि तुम भी किसी को रोज हलाल करते हो।।
बुरे वक्त में मुस्कुराने की बात करते हो।
नए दौर में गुजरे जमाने की बात करते हो।।
Wednesday, October 29, 2008
यह हमारी आस्था का सवाल है
कई दिनों से ब्लाग से दूर रहा। इसके लिए सभी ब्लगर साथियों से क्षमा चाहूंगा। थोडी व्यस्तता रही इन दिनों या यूं कह लें कि फेस्टिवल सीजन ने उलझाए रखा। काम ही अपना ऐसा है। खैर इन दिनों बहुत कुछ ऐसा रहा जिससे हम ही नहीं पूरी दुनिया सकते में रही। आर्थिक मंदी ने पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि अमेरिका से लेकर जापान तक कभी भी ढह सकते हैं। पूंजी का दम दिखा लोगों को। सेंसेक्स ऐसा गिरा कि कईयों को ले गया। आईसीआईसीआई बैंक के दिवालिया होने की अफवाह भी उडी और कामत जी को स्थिति साफ करनी पडी। जेट ने राज ठाकरे के नाम पर 1900 कर्मचारियों को फिर नौकरी पर रखा तो एक बिहारी युवक को सरेआम एनकाउंटर कर दिया गया। अब असल मुददे पर चलते हैं। कई दिनों से दिमाग में एक बात चल रही है। मन में अजीब हलचल है। पेशानी पर बल पडे हुए हैं और मन में ऐसी भडास है कि फट जाने को जी कर रहा है। बाजार आज पूरी तरह से हम पर हावी हो चुका है। आज जो कुछ बाजार चाह रहा है हम वही कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि बाजार मदारी है और हम बंदर। आज हमारी आस्था यह बाजार तय कर रहा है। हमें कैसे पूजा करनी है, त्योहार या पर्व पर क्या करना है क्या नहीं करना यह सब बाजार तय कर रहा है। गरीब का तो कोई धर्म ही नहीं बचा। कोई त्योहार ऐसा नहीं बचा जिसे वह पूरी आस्था से पूरे साजो सामान के साथ मना सके। पुराने रस्म और पुरातन चीजों की जगह बाजार के रेडिमेट आइटमों और नए रस्मों ने ले ली है। चीजें बदल रही हैं बडी तेजी से बाजार के लिए। जगह जगह कुछ ऐसे लोगों को बिठा दिया गया है जो हमे बाजार के हिसाब से आस्था को पूरी करने की सलाह दे रहे हैं। संचार और समाचार के माध्यम भी बाजार के मुताबिक पढा रहे हैं और दिखा रहे हैं। यह एक बुरा संकेत है। अब हमे यह तय करना है कि हमे बाजार के हिसाब से चलना है या खुद के। सवाल जरा कठिन है लेकिन जवाब हमे ढूढना ही होगा।
Sunday, October 12, 2008
कभी इश्क ने जुदा किया कभी इश्क ने मिला दिया
कभी इश्क ने जुदा किया कभी इश्क ने मिला दिया।
कभी इश्क ने हंसा दिया कभी इश्क ने रुला दिया।
पलकों पर जब भी नींद ने रखने चाहे अपने कदम।
नजरों ने तेरी आ के मुझे आहिस्ते से जगा दिया।।
हर रास्ते पर अब तो मुझे मंजिल नजर आने लगी।
तूने हाथ क्या पकडा मेरा हर फासला मिटा दिया।।
जिंदगी कितने रंगों में अब मेरे सामने आने लगी।
बेरंग ख्वाबों में मेरे तूने रंग भरना सीखा दिया।।
कभी इश्क ने जुदा किया कभी इश्क ने मिला दिया।
कभी इश्क ने हंसा दिया कभी इश्क ने रुला दिया।
Thursday, October 9, 2008
रावण तुम्हे जिंदा रहना होगा
रावण तुम जिंदा रहो यूं ही। सालों साल,सदियों तक। ऐसे ही अपने दसों चेहरों के साथ। अगर तुम मर गए तो राम का क्या होगा। सच्चाई का क्या होगा। तुम ही तो वह एकमात्र साक्ष्य हो जो कहता है कि इस धरती पर कभी राम ने अवतार लिया था, इस धरती पर कभी धर्म का अधर्म से युद्ध हुआ था, सच के सामने बुराई का नाश हुआ था। अब राम सेतु को ही ले लो। आज तक उसके अस्तित्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं कल हो सकता है राम के अस्तित्व पर सवाल खडा हो जाए तो जवाब कौन देगा। कौन लोगों को बताएगा कौन सरकार को बताएगा कि राम ने धरती पर अवतार लिया था। इसलिए हे रावण तुम्हारा जिंदा रहना जरूरी है। बेहद जरूरी। हे रावण तुम्हारा जिंदा रहना इसलिए भी जरूरी है कि तुम एक बडे शिक्षक हो इस समाज के लिए, हमारी नई पीढी के लिए अगर तुम्हारा अंत हो गया तो हमारे समाज को रास्ता कौन दिखाएगा हमारी भावी पीढी को सचाई और बुराई का फर्क कौन समझाएगा। आज हममें वो कुबत नहीं रही कि हम अपने बच्चों को सही राह दिखा सकें, आज हम खुद झूठ और बुराई का सहारा ले रहे हैं। इसलिए हे रावण तुम्हारा जिंदा रहना अति आवश्यक है।
Sunday, September 28, 2008
अमर उजाला में गूंजे लफ्ज
राष्ट्रीय हिंदी दैनिक अमर उजाला ने अपने 25 सितंबर के अंक में संपादकीय पेज के ब्लाग कोना कालम के तहत लफ्ज को स्थान दिया है। इस लेख में इसलाम और इंसानियत को जिंदा रखने की बात मैंने उठाई थी। अमर उजाला का आभार जो उसने इस समसामयिक विषय पर लिखे लेख को इंटरनेट के माध्यम से निकालकर जन जन तक पहुंचाया। क्योंकि भले ही हम इसे इंटरनेट युग कहें लेकिन यह सच है कि अभी भी देश की एक बडी आबादी इंटरनेट की पहुंच से दूर है।