राष्ट्रीय हिंदी दैनिक अमर उजाला ने अपने 25 सितंबर के अंक में संपादकीय पेज के ब्लाग कोना कालम के तहत लफ्ज को स्थान दिया है। इस लेख में इसलाम और इंसानियत को जिंदा रखने की बात मैंने उठाई थी। अमर उजाला का आभार जो उसने इस समसामयिक विषय पर लिखे लेख को इंटरनेट के माध्यम से निकालकर जन जन तक पहुंचाया। क्योंकि भले ही हम इसे इंटरनेट युग कहें लेकिन यह सच है कि अभी भी देश की एक बडी आबादी इंटरनेट की पहुंच से दूर है।
Sunday, September 28, 2008
अमर उजाला में गूंजे लफ्ज
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13 comments:
यह भी एक खबर है
छत्तीसगढ राज्य का बिलासपुर शहर जहां एक दिन अचानक अफ़वाह फ़ैली की ईदगाह की दिवाल को ढहा दिया गया तथा कब्र मे बुलडोजर चला दिया गया।इस अफ़वाह को सही मान मुसलमान धर्मावलम्बी उद्देलित हो उठे और समाज के लोग एक स्थान पर इसका बिरोध करने के लिए इकठ्ठे होने लगे। अफ़वाह को हवा देने वाले या कहिए की समाज के अगुआ बनने वाले दो मुस्लिम ब्यक्ति इसकी रणनीति तय कर रहे थे।इसमे स्थानीय नगर निगम का एक पूर्व पार्षद एवं बिकास प्राधिकरण का अध्यक्ष तथा दूसरा वर्तमान पार्षद था। इनकी कोई रणनीति जब तक परवान चढती तब तक इसी समाज का एक जागरूक ब्यक्ति सामने आ चुका था।वह ब्यक्ति थे स्थानीय दैनिक समाचार पत्र के सम्पादक मिर्जा शौकत बेग जो एक प्रखर पत्रकार माने जाते है। उन्होने अपने सान्ध्य दैनिक मे इस पर एक विस्तृत समाचार प्रकाशित किया और सच्चाई सामने रखी। उन्होने लिखा की ईदगाह का सौंदर्यीकरण किया जा रहा था जिसके कारण दिवाल ढह गई थी और इसे जानबूझ कर नही ढहाया गया। जिन लोगो द्वारा विरोध किया जा रहा है वे मुस्लिम समाज के हितचिन्तक कभी भी नही रहे हैं जिम्मेदार पद पर रहने के वाबजूद कभी भी समाज के कल्याण के लिए कोई भी कार्य नही किया केवल कांग्रेस के मंत्रियो और नेताओ को मजारो मे घुमाते रहे तथा अपनी राजनीतिक रोटी सेंकते रहे है। समाचार मे लिखा गया की जिस क्षेत्र मे ईदगाह है उस क्षेत्र मे प्रेस क्लब तथा अन्य रिहायसी मकान भी है जहां अनजानी कब्रो का अस्तित्व नई बात नही है ।पूरे क्षेत्र मे बेतरतीब पाय जाने वाले अनजानी कब्रो की सुध कभी भी नही ली गई फ़िर ईदगाह के उस कब्र के लिय हाय तौबा क्यों। इस समाचार ने अफ़वाह को हवा देने वालो की हवा ही खोल दी तथा शहर को अशान्त होने से बचाया।लोग सच्चाई जान कर वहकावे मे नही आए और ईदगाह के विकास के लिये स्थानीय प्रशासन को धन्यवाद दिया। स्थानीय पुलिस भी दबाव मे आकर ठेकेदार के खिलाफ़ शिकायत दर्ज कर ली थी अब उसके खिलाफ़ किसी तरह की कार्यवाही न करने की सहमति बन चुकी है।
अमर उजाला में प्रकाशन की बधाई।
@उमेश कुमार जी, सांप्रदायिक दंगों की रणनीति इसी तरह बनती है। इस का तोड़ भी यही है कि तुरंत विश्वसनीय तरीके से अफवाहों का खंडन किया जाए। इस रणनीति को अनेक बार हम लोग अपने गृह नगर में उपयोग कर उसे सांप्रदायिक हिंसा से बचा चुके हैं। इस के लिए जरूरी है। सांप्रदायिक राजनीति के विरोधियों का एक सशक्त कार्यदल हर नगर में हो और हरदम चौकस रहे।
अमर उजाला में प्रकाशन की बधाई।
बहुत सही लिखा है आपने. पेपर में आपका लेख छपने पे आपको बधाई
"Amar ujala deserves appreciation for this"
Regards
abrarji, bilkul pareshan n ho, bhale hi aatankiyon me naam muslimo k aa rahe ho par aap naam par mat jaayen we jo v hain, hain insaniyat k dushman. unko hindu or muslim ya kisi or kaum k rup me nahi dekhna hi thik hai. aap apni smwedanshilta, insaniyat me wishwas banayen rakhen. jahan mauka mile inshaniyat ki maad karen, logo ko jurm se niklne me sahayata karen or apne kaum k prati nishthawan rahen, adhik chinta n karen...
athank ki koi jath yaa dharam nahi hota.Hate the sin not the sinner.
आपकी सोच काबिले तारीफ है..दो दिन पहले मै ndtv पर एक प्रोफेसर साहब का इंटरव्यू देख राह था जो मूलत आजमगढ़ के रहने वाले है ,दिल्ली में कभी-कभार गेस्ट लेक्चर लेने के लिए आते है...आहत थे ओर लगभग वाही बात कर रहे थे जो आपने कही है ...इस सिलसिले में नसीर साहब का इंटरव्यू भी गौर फरमाने जैसा है...उन्होंने कई मार्के की बात कही...
उमेद है ये धुंध भी छन्ट जायेगी
badhaii
abrar bhai, id ki badhai. kaisi hai tumhari lugai, jo thi tumane bhagai. chalo khatam hui tumhari tanhai
ईद मुबारक.
ईद मुबारक.
Baht achha likha aap ne...........
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