नई नस्लों ने अब सीख ली है जी हुजूरी।
अब आइंदा से यहां इनकलाब नहीं होगा।
जी तो ऊब गया है इस शहर से मगर।
किसी के वादे ने हमें रोक रखा है।।
टुकडे टुकडे कर दिए ख्वाबों को सभी।
वक्त जो बदलेगा तो जोडके उन्हें देखूंगा।
बडे करीब से लिखा है जिंदगी को।
कभी फुर्सत मिले तो पढ लेना।।
तेरे हाथों में ढूंढता रहता हूं।
जानता हूं कि तू मेरी किस्मत है।।
अब तो आ जाओ कि शाम ढल आई।
बिन तेरे ये चराग भी जलेंगे कहां।।
Saturday, March 14, 2009
कभी फुर्सत मिले तो पढ लेना
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6 comments:
itna khoobsoorat likha hai aapne, fursat me kya fursat nikal ke padhenge.
ek ek sher jindagi ke roomani ahsaason se bheega hua. bahut accha likha hai aapne.
नई नस्लों ने अब सीख ली है जी हुजूरी।
अब आइंदा से यहां इनकलाब नहीं होगा।
वाह क्या बात है सभी शेर एक से बढ कर ऎक
धन्यवाद
bahut badhhiya
bhai saahab taareef bhi karein to wo bhi kam pad jaaye ...waakayi bahut hi jaandaar aur shaandaar
बहुत बढिया ...
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