Friday, March 20, 2009

अब दोस्त भी मिलते हैं तो फासलों के साथ।

जिंदगी कहीं आदत न बिगाड दे अपनी इसलिए।
खुशियां बेचकर अपनी हम दर्द खरीद लेते हैं।

वो कहने लगे तुममे अब वो बात नही रही।
मैने जो देखा तो उनकी निगाहें ही झुकी थीं।।

अब बेचने को अपने पास कुछ भी बचा नहीं।
बस ख्वाब हैं थोडे बहुत बोले खरीदोगे।।

अब दोस्त भी मिलते हैं तो फासलों के साथ।
कहीं उम्र साथ अपने दूरियां लेकर तो नहीं चलती।।

4 comments:

राज भाटिय़ा said...

अब दोस्त भी मिलते हैं तो फासलों के साथ।
कहीं उम्र साथ अपने दूरियां लेकर तो नहीं चलती।।
वाह क्या बात है, आप का हर शेर अपने आप मे एक मिशाल है...
धन्यवाद

seema gupta said...

अब बेचने को अपने पास कुछ भी बचा नहीं।
बस ख्वाब हैं थोडे बहुत बोले खरीदोगे।
" very loving words and expressions"

Regards

डॉ .अनुराग said...

अब दोस्त भी मिलते हैं तो फासलों के साथ।
कहीं उम्र साथ अपने दूरियां लेकर तो नहीं चलती
bahut khoob.

Unknown said...

bhut achha abrar.