Sunday, February 24, 2008

यूनान, मिस्र, रुमा सब मिट गए......

यूनान, मिस्र, रुमा सब मिट गए जहाँ से।
बाक़ी मगर है अब तक नामों निशाँ हमारा।
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान........

तब मैं काफी छोटा था जब दादा कि जुबान से डॉक्टर इकबाल कि यह नज्म सुना करता था। मेरे दादा कोई स्वतंत्रता सेनानी नही थे मगर उनको इस बात का गर्व था कि वह सारी हस्तियाँ मिट गईं जिनको खुद पर नाज था मगर हम फिर भी नही टूटे जबकि हमसे पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे राष्ट्र निकल गए। आज वह होते तो निश्चित तौर पर परेशान हो जाते। आज देश के हालत बदल रहे हैं। शायद हम अपनी आने वाली पीढियों को डॉक्टर इकबाल कि उक्त दो लाइनों का मतलब न समझा पाएं। खुदा येसा दिन न दिखाए। जो चिंगारी कल तक देश कि आर्थिक राजधानी मुम्बई मी थी वह आग कि शक्ल में देल्ही पहुंच चुकी है। ओछी राजनीती कि यह चाल अब कम मानसिकता वाले संवैधानिक गलियारे तक आ गई है। अगर इस पर जल्द ही लगाम न लगाया गया तो यह भयानक रूप ले सकती है। और संभव है कि ab यह कोलकाता, अहमदाबाद, सूरत और उसके बाद लुधियाना तक पहुंच जाये।
यह मुद्दा कोई नया नही खास तुर पर मुम्बई और असाम के लिए। असम में भी बिहार के लोगों पर हमले हो चुके हैं। और हम इससे निपटते आये हैं। लेकिन कहीं न कहीं हम वो जमीन तैयार कर रहे हैं जो हमे अलग थलग कर सकता है। हमारा भी हसर रशिया कि तरह हो सकता है। हमारे सियासतदान भले ही इस बात को हलके में ले रहे हों मगर पाकिस्तान और चीन के हाथ हम एक नई सोच दे रहे हैं।
राज thakre जैसे नेता कि बात केवल मुम्बई के कुछ लोगों तक ही थी मगर देल्ही के up rajypal tejindar pal का यह कहना कि uttar bhart के लोग niyamon का palan नही करते एक नई बहस shuru कर सकता है और यह bahs jarurii bhii है आख़िर यह तय हो जाना चाहिए कि हम bhartiy हैं या बिहारी या marathi.
Abrar ahmad

Posted by abrar ahmad



1 comments:
डा०रूपेश श्रीवास्तव said...
भाईजान ये तय कौन करेगा कि हम औन हैं भारतीय या फिर मौके दर मौके अपनी पहचान नेताओं के कहने से बदल देने वाले लोग जो कभी बिहारी या मराठी बन जाते हैं और कभी हिन्दू और मुसलमान.......
हमें अब तो जागना होगा मेरे भाई कि राजनेता हमें इन्हीं कुचक्रों में उलझाए रख कर देश को डकारे जा रहे हैं ।

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