Saturday, May 10, 2008

मां मैं अंश हूं तेरा

मां मैं अंश हूं तेरा।
मुझमे समाहित हैं तेरे विचार
संस्कार तेरा प्यार।।
तू जननी है मेरी, मेरे गुणों की।
मां मैं अंश हूं तेरा।।

तूने ही मुझको चलना सीखाया।
ये जीवन है क्या तुम्ही ने बताया।।
मुसीबत से लडना भी तुमने सीखाया।
मैं आवाज हूं मां तेरी धडकनों का।
तू जननी है मेरी, मेरे व्यक्तित्व की।
मां मैं अंश हूं तेरा।।

जहां भी रहूंगा तेरा नाम लूंगा।
तेरे आंसुओं को अपनी पलकों पर थाम लूंगा।
मेरी हर खुशी तेरी चरणों में माते।
मैं कर्जदार हूं तेरी हर एक सांस का।
तू जननी है मेरी, मेरी भावनाओं की।
मां मैं अंश हूं तेरा।
मां मैं अंश हूं तेरा।।

मां यह शब्द सुनते ही हम खुद को सबसे सुरक्षित महसूस करते हैं। यह केवल एक शब्द ही नहीं ममता की वह विशाल छांव है जो हमे हर मुसीबत और विपदा से बचा कर रखती है। यह शब्द सुनते ही हम खुद को एक बच्चा महसूस करते हैं चाहे हमारी उम्र जो भी हो। साथ ही हमारा बचपना भी झलकने लगता है। सभी साथियों से अपील है कि इस कविता को पढने के बाद एक बार मां शब्द का उच्चारण जरूर करें। देखिएगा इससे कितना सुकून मिलेगा। तो कहिए मां।

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

अबरार भाई मां का कर्ज तो कोई भी नही चुका सकता, वक्या मे आप ने कम शब्दो मे बहुत कुछ लिख दिया, धन्यवाद

mehek said...

maa ke liye sanwedana bahut hi marmik aur badhiya likhi hai,sahi hai,no one can erplace mother in this world.bahut khub.