Monday, March 24, 2008

हंसती आंखों में भी


हंसती आंखों में भी गम पलते हैं पर कौन जाए इतनी गहराई में।
अश्कों से ही समंदर भर जाएंगे बैठो तो जरा तन्हाई में।।

जिंदगी चार दिन की है इसे हंस कर जी लो।
क्या रखा है आखिर जमीन ओ जात की लडाई में।।

तुमसे मिलने की चाहत हमे कहां कहां न ले गई।
वफा का हर रंग देख लिया हमने तेरी जुदाई में।।

जिस सुकून के लिए भटकता रहा दर दर अबरार।
या खुदा वो छुप कर बैठी रही कहीं तेरी खुदाई में।।

3 comments:

mehek said...

bahut hi lajawab hai khas kar pehla sher altimate.

vikas pandey said...

बेहतरीन, सही है पहली २ पंक्तियाँ लाजवाब है. आज पहली बार आपका ब्लॉग देखा, आगे भी पढ़ता रहूँगा.

राज भाटिय़ा said...

अबरार जी आप के चारो शेर ही बहुत खुब हे,बहुत धन्यवाद.