फोटो साभार : MSN
अबरार अहमद
ये मुहब्बत की इन्तहां नहीं तो और क्या है।
समंदर आज भी प्यासा है किसी की चाहत में।।
शोरगुल में जिंदगी को ढुढते हो ये दोस्त तुम भी।
कभी गौर से देखना इसे खामोशी की आहट में।।
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जी तो करता है कि आज फिर से चूम लूं तेरी पेशानी को।
पर अफसोश आज मैं तुझसे से कहीं छोटा हूं।
वक्त ने छीन लिए सारे कांधे मुझसे।
इसलिए अब दीवारों से लग के रो लेता हूं।।
जी तो करता है कि आज फिर से चूम लूं तेरी पेशानी को।
पर अफसोश...................
अबरार अहमद
उनकी यादों को चरागों की तरह हर शाम जलाए रखा।
कुछ इस तरह से हमने उन्हें अपना बनाए रखा।।
कडकती धूप में मेरा पांव न जल जाए कहीं।
मेरे महबूब ने इसलिए मुझे घंटों बिठाए रखा।।
और यह तुफान तो अब आया है अपने उरोज पर।
उस समंदर से पूछो जिसने इसे बरसों दबाए रखा।।
कुछ न छुपाने कि कसम तुमने तो दी थी मुझको।
मगर एक बात थी जिसे हमने ताउम्र तुमसे छुपाए रखा।।
उनकी यादों को चरागों की तरह हर शाम जलाए रखा।
कुछ इस तरह से हमने उन्हें अपना बनाए रखा।।
अधूरे ख्वाब थे मेरे तेरे आने से पहले।
मचलते जज्बात थे मेरे तेरे आने से पहले।।
हरसू भटकता रहता था गलियों गलियों में।
आवारा नाम था मेरा तेरे आने से पहले।।
तूने जिंदगी जीना सीखा दिया मुझको।।
टूटता साज था मेरा तेरे आने से पहले।।
मुझे संभाल लेगा कोई अब इस बात की तसल्ली है।
कदम लडखडाते थे मेरे तेरे आने से पहले।।
तेरे आने से हो गया जर्रा जर्रा रौशन।
अंधेरे साथ थे मेरे तेरे आने से पहले।।
अधूरे ख्वाब थे मेरे तेरे आने से पहले।
मचलते जज्बात थे मेरे तेरे आने से पहले।।
इस बदलते दौर में इतना तो ख्याल रखा है।
हया के चादर में रिश्तों को संभाल रखा है।।
तलाशते तलाशते जिनको इक उम्र गुजर गई अपनी।
उस मंजिल को तमाम रास्तों ने संभाल रखा है।।
मुकददर को कोसने वालों सुन लो।
अपने हाथों में तुमने वो मलाल रखा है।।
इस सूरत में ढूढते हो हमारे सीरत की तस्वीर क्यूं।
वक्त ने दे के सबकुछ हमें अब भी फटेहाल रखा है।।
हो तो जरा मसजिद तक हो आउं मैं भी।
इक मुददत से इस दिल गुनाहों को पाल रखा है।।
अबरार अहमद