Wednesday, April 16, 2008

पलकों में आंसूओं को



पलकों में आंसूओं को छुपाते चले गए।
हम इस तरह से इश्क निभाते चले गए।।

मैं कहते कहते थक गया कि मैं नशे में हूं।
लेकिन वो मुझको और पिलाते चले गए।।

हर जख्म नासूर बन चुका था मगर वो।
सितम दर सितम हम पर ढाते चले गए।।

चलने का तमीज मुझको आ जाए एक बार।
इसलिए नजरों से बार बार वो गिराते चले गए।।
अबरार अहमद

2 comments:

Neeraj Rohilla said...

अबरारजी,
बढिया प्रयास है, आगे भी जारी रखें

चलने का तमीज मुझको आ जाए एक बार।
इसलिए नजरों से बार बार वो गिराते चले गए।।

इस ख्याल में कुछ जमा नहीं, थोडा और सोचिये तो मजा आये ।

mehek said...

मैं कहते कहते थक गया कि मैं नशे में हूं।
लेकिन वो मुझको और पिलाते चले गए।।
wah kya baat kahi,har sher apne aap mein khubsurat hai,awesome