Thursday, April 17, 2008

उनकी यादों को चरागों की तरह

उनकी यादों को चरागों की तरह हर शाम जलाए रखा।
कुछ इस तरह से हमने उन्हें अपना बनाए रखा।।

कडकती धूप में मेरा पांव न जल जाए कहीं।
मेरे महबूब ने इसलिए मुझे घंटों बिठाए रखा।।

और यह तुफान तो अब आया है अपने उरोज पर।
उस समंदर से पूछो जिसने इसे बरसों दबाए रखा।।

कुछ न छुपाने कि कसम तुमने तो दी थी मुझको।
मगर एक बात थी जिसे हमने ताउम्र तुमसे छुपाए रखा।।

उनकी यादों को चरागों की तरह हर शाम जलाए रखा।
कुछ इस तरह से हमने उन्हें अपना बनाए रखा।।

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

उनकी यादों को चरागों की तरह हर शाम जलाए रखा।
इक दर्द उम्र भर हम ने अपने सीने मे छुपाये रखा।।
अबरार मियां खुब लिखते हो,धन्यवाद

डॉ .अनुराग said...

और यह तुफान तो अब आया है अपने उरोज पर।
उस समंदर से पूछो जिसने इसे बरसों दबाए रखा।।

bahut badhiya.....

"अर्श" said...

कडकती धूप में मेरा पांव न जल जाए कहीं।
मेरे महबूब ने इसलिए मुझे घंटों बिठाए रखा।।

kamal ka matala mara hai aapne bahot khub dhero badhai...