दर्द को सीने में हमसे पिरोया न गया
गिरते रहे आंसू मगर जी भर रोया न गया।
तुमको पाने की जिद में कुछ यूं जागा कि
सदियों तक इन आंखों से सोया न गया।।
किसी शबनम ने तर कर दिया मुझको ऐसे कि
चाहकर भी कभी इस बदन को भिगोया न गया।।
Tuesday, September 16, 2008
दर्द को सीने में हमसे पिरोया न गया
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
क्या बात है!! बहुत खूब!!
Very nice gazal.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
तुमको पाने की जिद में कुछ यूं जागा कि
सदियों तक इन आंखों से सोया न गया।।
"behtreen"
Regards
yaar... aap ka har shabd jaan lete ta hai. bus ek hi gujaris hai ki apne blog likhane me jada din ka vaqt na liya karo..
badi be sabri se aapke post ka intazaar karta hun... aapke tarah hi ek patrakar.
umar kya hai aapki janaab
sadiyon se soye jo nahi
insaan hi ho yaa koi naayaab cheej?
ha ha ha .......
सादर ब्लॉगस्ते!
कृपया निमंत्रण स्वीकारें व अपुन के ब्लॉग सुमित के तडके (गद्य) पर पधारें। "एक पत्र आतंकवादियों के नाम" आपकी अमूल्य टिप्पणी हेतु प्रतीक्षारत है।
Post a Comment