Saturday, April 11, 2009

जहां नींव हो वहां इतनी नमी अच्छी नहीं

अब तक इस ब्लाग पर जो कुछ भी लिखा गया है वह मेरे जेहन की उपज है। लेकिन आज यहां किसी और को जगह दे कर मैं यह परंपरा तोड रहा हूं और इसके पीछे जो कारण है वह मैं आप सबसे बांटना जरूर चाहूंगा। कल मेरी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई जो पहले पहल तो बिल्कुल साधारण सा लगा लेकिन कुछ समय साथ बैठकर बातें जो हुईं तो एहसास हुआ कि यह शख्श वाकई में खास है। वो ऐसे कि उसके पास साहित्य की इतनी अच्छी समझ और जानकारी थी कि मैं तो बस उसे सुनता ही रह गया। जी तो कर रहा था कि उससे वो तमाम जानकारियां ले लूं जो मेरे पहले की हैं। लेकिन वक्त कमबख्त किसका हुआ है जो मेरा होता। और हमने एक दूसरे को फिर मिलने के वादे के साथ अलविदा कह दिया। लेकिन इस मुलाकात के बीच जो दो शेर इस शख्स से सुनाए उन्होंने मुझे झिंझोड कर रख दिया। कल से अब तक वो दोनों शेर मेरे जेहन में कौंध रहे है। यही वजह है कि इन दोनों शेरों को मैं अपने इस ब्लाग पर जगह दे रहा हूं। मुझे यह नहीं मालूम कि यह दोनों शेर किस शाइर के हैं अगर किसी साथी के पास इन दोनों शेरों के और भी लाइनें हों तो मुझको भी जरूर बताएं। वो दोनों शेर इस तरह हैं।
1 लौटकर मां बाप खूब रोए अकेले में।
मिटटी के खिलौने भी सस्ते नहीं थे मेले में।

2 मुनव्वर कभी मां के सामने खुलकर मत रोना।
जहां नींव हो वहां इतनी नमी अच्छी नहीं।।

Thursday, April 2, 2009

हर तरफ शोर है

हर तरफ शोर है।
आदमी कमजोर है।
रूह मिलती नहीं।
सांस चलती नही।
होंट खुलते नहीं।
फिर भी इक जोर है।

हर तरफ शोर है।
आदमी कमजोर है।
गफलतों से घिरा।
आदतों से डरा।
मौत से लडता हुआ।
ये इक कटी डोर है।

हर तरफ शोर है।
आदमी कमजोर है।
खुद में घुटता हुआ।
रोता बिलखता हुआ।
ये बस चला जा रहा।
मंजिल जाने किस ओर है।

हर तरफ शोर है ।
आदमी कमजोर है।।