ये तोहमत कि हम बदजुबान हो गए।
इसी बहाने कुछ अपने कद्रदान हो गए।
इमानदारी के लफ्जो को बेचते बेचते।
आखिर हम भी एक दिन बेइमान हो गए।।
हर रोज जानवरों का किरदार निभाते रहे।
पूछा जो खुदा ने तो कहा हम इंसान हो गए।।
हमारी शक्ल देखकर रास्ता बदलने वाले।
आज क्या बात कि सरकार मेहरबान हो गए।।
क्या बना दूं और कौन सी नियामत लाऊं।
बडी मुददत के बाद वो मेरे मेहमान हो गए।।
हमने झेले हैं गमों और मुश्किलों के तुफां को।
आप तो इन आंधियों में ही परेशान हो गए।।
Monday, September 1, 2008
आखिर हम भी एक दिन बेइमान हो गए
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9 comments:
bahut behtar, lekin pahle jaisa nahin.
ye to honaa hi tha , chalo achaa hai kuch naam to aaya bhale badnaam hi sahii.
stutya prayaas shubhkaamnaayein
sundar
bahut badhia. likhte raho.
इमानदारी के लफ्जो को बेचते बेचते।
आखिर हम भी एक दिन बेइमान हो गए।।
ये शेर बेहद पसंद आया .....
जीवन की सच्चाईयों का बखूबी चित्रण किया है भाई, बधाई।
हर रोज जानवरों का किरदार निभाते रहे।
पूछा जो खुदा ने तो कहा हम इंसान हो गए।।
हमारी शक्ल देखकर रास्ता बदलने वाले।
आज क्या बात कि सरकार मेहरबान हो गए।।
क्या बना दूं और कौन सी नियामत लाऊं।
बडी मुददत के बाद वो मेरे मेहमान हो गए।।
बहुत अच्छा लिखा है। बधाई
behtar,,, mene kafi rachnayein padhi hain.... apki bhasha par achhi pakad hai... keep it up
kyon na pareshan ho in aandhiyon se
muddaten ho gayi aur ye hai ki milane nahi dete
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