Monday, May 5, 2008

मां अब मैंने देख ली है दुनिया

अब खुद उठकर पी लेता हूं पानी।
अब जली रोटियां भी खा लेता हूं।
अब नहीं खलता खाने में सब्जी का न होना।
मां अब मैंने देख ली है दुनिया।।

अब कोई नहीं पूछता कहां गए थे।
अब कोई नहीं पूछता क्या कर रहे हो।
अब कोई नहीं पूछता आगे क्या करोगे।
अब्बू अब मैंने देख ली है दुनिया।।

अब मुझसे नहीं लडते मेरे भाई।
अब बहन नहीं करती कोई जिद।
अब दोस्त नहीं ले जाते घूमने के लिए।
अब मैंने देख ली है दुनिया।।
हां अम्मी मैंने देख ली है दुनिया।।
अबरार अहमद

5 comments:

kmuskan said...

अब मैंने देख ली है दुनिया।।
हां अम्मी मैंने देख ली है दुनिया
bahut pyari kavita likhi hai

Faceless Maverick said...

इक गहराई है तुम्हारे लफ्जों में अबरार साहब. कायम रखना.
यह इल्तज़ा भी है और दुआ भी.

अमिताभ said...

अब खुद उठकर पी लेता हूं पानी।
अब जली रोटियां भी खा लेता हूं।
अब नहीं खलता खाने में सब्जी का न होना।
मां अब मैंने देख ली है दुनिया।।

behad umda !! bhaut hi sundar !!

Puja Upadhyay said...

yaadon ki sondhi khushbu hai kavita mein...acchi lagi

pallavi trivedi said...

अब खुद उठकर पी लेता हूं पानी।
अब जली रोटियां भी खा लेता हूं।
अब नहीं खलता खाने में सब्जी का न होना।
मां अब मैंने देख ली है दुनिया।।

aapki ye rachna padhkar mujhe meri ek kavita yaad aa gayi!kuch kuch aisi hi hai. bahut umda bhaav hain aapki kavita mein...