कहते है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। प्राचीन युग से अब तक हमें समय समय पर तमाम चीजों की जरूरत पडी और हमने अपनी जरूरत को महसूस करते हुए वह तमाम चीजें इजाद भी कीं। यह बात दिगर है कि उन तमाम चीजों में से कितनी ही आगे चलकर हमारे लिए घातक साबित हुईं। पिछले कुछ दिनों से ब्लागजगत पर हो रही हाय हाय और आरोप प्रत्यारोप से भी कुछ ऐसा ही इशारा मिल रहा है। ब्लाग का इजाद हुए अभी बहुत दिन नहीं हुए या यूं कह लें कि अभी ब्लाग जगत का शैशव काल ही चल रहा है। मगर अभी से इसके चिंताजनक वह पहलू सामने आने लगे हैं जो कुछ कुछ हमारे ही द्वारा इजाद किए गए उन चीजों से मेल खाते हैं जो हमारे लिए घातक साबित हुए। व्यक्तिगत रूप से अब मैं यह महसूस करने लगा हूं कि जिस ब्लाग को मैं या अन्य कुछ साथी हिंदी जगत या लेखनी के विकास का एक जरिया मान रहे थे या कुछ साथी अपने संस्मरण या अपने जज्बात सहेज कर रखने वाला एक सजाया गया कमरा समझ रहे थे दरअसल वह ब्लाग कुछ लोगों के लिए सिर्फ और सिर्फ बकवास निकाले, गाली गलौच करने एक दूसरे की बखिया उधेडने और एक दूसरे को नीचा दिखाने का जरिया बनता जा रहा है। यह निश्चित रूप से एक ऐसा बुरा संकेत है जो ब्लाग जगत के अंत या इसके बेहद कुरूप हो जाने का इशारा करता है। कुछ लोग बहुत जल्द बहुत बडा बनने का सपना देखते हैं और ऐसे लोग विवाद को विकास का साधन समझ हर रोज एक नया बखेडा खडा करना चाहते हैं ताकि ब्लाग जगते के लोग उनके पचडे में पडकर उन्हे अहमियत दें और वह दिनोंदिन मशहूर होते जाएं। यह एक ऐसी नापाक कोशिश है जिसे अगर ब्लागर समझ जाएं तो इनके मंसूबों पर पानी फिर सकता है। ऐसे ब्लागरों का बहिष्कार किया जाना चाहिए जो इस तरह की हरकत करें। यह ब्लागजगत के हित में है। यह एक अपील है।
Monday, May 26, 2008
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8 comments:
सही कहा अबरार।
सही कहा। अगर ब्लाग जगत को जिंदा रखना है तो ऐसे लोगों का बहिष्कार करना ही होगा। यही ब्लाग हित में होगा। साधुवाद अबरार। लिखते रहो।
सही सही।
ब्लाग तो ब्लाग है। जब आप इस पर कुछ भी लिख सकते हैं तो कुछ भी कमेंट होने से ड़रते क्यों हैं? ये तो होते रहेंगे, आप की खिड़की पर भी और लोग अपने गले में तख्तियाँ भी टांगेंगे।
कुछ दिनों में इतने होने वाले हैं ब्लाग कि आप को पढ़ने की फुरसत नहीं मिलने की। टिप्पणी तो दूर की बात रही। सब चलेगा और ब्लाग भी।
गुस्सा वाजिब है, प्यारे, मगर फ़िलहाल इस मसले पर मैं भी दिनेशराय द्विवेदी वाली पटरी पर ही सोचता हूं..
अपन भी प्रमोदजी और दिनेश जी से सहमत हैं.
अपन भी प्रमोदजी और दिनेश जी से सहमत हैं.
हम भी हैं लाइन में। :)
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