दर्द को हंसी के पैबंदों में छुपाते क्यूं हो।
रोने का सबब है यह मुस्कुराते क्यूं हो।।
ये वो हैं जिन्होंने न सुधरने की कसम खा रखी है।
इन लोगों को आखिर आईना दिखाते क्यूं हो।।
वही होगा जो मुकददर ने तय कर रखा है।
रह रह कर यही राग सुनाते क्यूं हो।।
तुमको शिकवा है कि सही राय नहीं देता मैं।
फिर हर बार मुझे अपने घर बुलाते क्यूं हो।।
Monday, August 4, 2008
दर्द को हंसी के पैबंदों में छुपाते क्यूं हो
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7 comments:
बहुत ही बेहतरीन रचना है।बहुत बढिया लिखा है-
दर्द को हंसी के पैबंदों में छुपाते क्यूं हो।
रोने का सबब है यह मुस्कुराते क्यूं हो।।
वाह!! क्या बात है..आनन्द आ गया. बधाई.
तुमको शिकवा है कि सही राय नहीं देता मैं।
फिर हर बार मुझे अपने घर बुलाते क्यूं हो।।
बेहतरीन..
***राजीव रंजन प्रसाद
वही होगा जो मुकददर ने तय कर रखा है।
रह रह कर यही राग सुनाते क्यूं हो।।
बहुत खूब ..बहुत सुंदर लिखा है
....अति सुंदर........
accha hai Ghazal me aapki koshish kamobesh kamyab ho sakti hai.... bhav acche hain
बहुत सुंदर लिखा है
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