Thursday, July 24, 2008

या खुदा आहिस्ता आहिस्ता यह रात चले

देख लो जो जरा कि जज्बात चले।
लब खुलें जो तुम्हारे तो बात चले।

चांद भी है और मेरा महबूब भी।
या खुदा आहिस्ता आहिस्ता यह रात चले।

आज विरान हो गया यह शहर कल तक जो आबाद था।
देखो किस रफ्तार से ये बेरहम हालात चले।।

किसी से मिलना तो इतनी गुंजाईश जरूर रखना।
कुछ चले ना चले इक अदद मुलाकात चले।।

चांद की सैर करी, तारों को तोड लाया मैं।
बैठे बैठे दिमाग में क्या क्या ख्यालात चले।।

देख लो जो जरा कि जज्बात चले।
लब खुलें जो तुम्हारे तो बात चले।

12 comments:

art said...

sundar lagi.

सुकांत महापात्र said...

बहुत ही सुंदर अबरार भाई। लिखते रहिए। बधाई।

Udan Tashtari said...

देख लो जो जरा कि जज्बात चले।
लब खुलें जो तुम्हारे तो बात चले।

--बेहद खूबसूरत...बहुत उम्दा...वाह!

Rajesh Roshan said...

किसी से मिलना तो इतनी गुंजाईश जरूर रखना।
कुछ चले ना चले इक अदद मुलाकात चले।।

वाकई उम्दा

pallavi trivedi said...

आज विरान हो गया यह शहर कल तक जो आबाद था।
देखो किस रफ्तार से ये बेरहम हालात चले।।

bahut behtareen...

बालकिशन said...

खुबसूरत खयालातों को बाँध कर रची गई एक बेहद उम्दा रचना.
बहुत बहुत बधाई.

vipinkizindagi said...

बहुत सुंदर रचना

पारुल "पुखराज" said...

kya baat hai..bahut badhiyaa

डॉ .अनुराग said...

आज विरान हो गया यह शहर कल तक जो आबाद था।
देखो किस रफ्तार से ये बेरहम हालात चले।।

किसी से मिलना तो इतनी गुंजाईश जरूर रखना।
कुछ चले ना चले इक अदद मुलाकात चले।।

चांद की सैर करी, तारों को तोड लाया मैं।
बैठे बैठे दिमाग में क्या क्या ख्यालात चले।।



क्या कहूँ ये तीनो शेर कई दिनों तक मेरे साथ चलेंगे .....सुभान अल्लाह क्या लिखा है यार तुमने......

vinodkmusan said...

dost apki kavita dil ko chu leni wali hai, BADHAI
jari rakhen

धर्मेन्‍द्र चौहान said...

mail id bhej do to bat ho jaye mera id hai
dharmendrabchouhan@gmail.com

धर्मेन्‍द्र चौहान said...

mail id bhej do to bat ho jaye mera id hai
dharmendrabchouhan@gmail.com