Wednesday, July 2, 2008

एक अरसे बाद गुजरा था उसी मोड से मैं

थम गईं सांसे,रुक गई दिल की धडकन।
एक अरसे बाद गुजरा था उसी मोड से मैं।।

जहां पहली बार तुम्हे देखा था।
जहां पहली बार तमसे की थी बात।
जहां पहली बार तुम सकुचाईं थीं।
जहां पहली बार बोलीं थीं तुम।

जहां अक्सर हम मिल ही जाते थे।
जहां पहुंचकर तुम सिकुड जाती थीं।
जहां कुछ देर वक्त ठहर जाता था।
जहां मेरा हर गम निपट जाता था।।

जहां तुमने किया था इकरार कभी।
जहां पूरे हुए थे मेरे ख्वाब सभी।
जहां दौडा था जी भर के खुशी से कभी।
जहां बैठे रहते थे छुपके दोस्त सभी।।

जहां आखिरी बार मिले थे उस दोपहरी में।
जहां आखिरी बार तुम्हें जी भर देखा था।
जहां आखिरी बार चला था साथ तेरे।
जहां आखिरी बार भरी थी गहरी सांस मैंने।।

अब तो यह मोड भी पूछती है मुझसे।
क्यूं छोड कर चली गई तुम मुझको।
अब यहां से गुजरने में डर लगता है।
जैसे इस मोड पर खडी तुम तलाशती हो मुझे।।

10 comments:

नीरज गोस्वामी said...

अबरार जी
बहुत संवेदनशील रचना..दिल के भाव शब्दों में ढाल दिए आपने....बहुत खूब.
नीरज

Udan Tashtari said...

बहुत ही बेहतरीन एवं उम्दा रचना.

mehek said...

bahut hi umada rachana,bhavuk bhi,badhai

Advocate Rashmi saurana said...

bhut sundar.jari rhe.

art said...

bahut khoobsurat....man chhone wali...

रंजू भाटिया said...

बहुत खूब लिखा है

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अब तो यह मोड भी पूछती है मुझसे।
क्यूं छोड कर चली गई तुम मुझको।
अब यहां से गुजरने में डर लगता है।
जैसे इस मोड पर खडी तुम तलाशती हो मुझे।।
bahut pyari laaine hain. Badhaayi.

Puja Upadhyay said...

aakhiri do panktiyan bahut khoobsoorat lagi.

Anonymous said...

जहां जाओगी भुला न पाओगी मुझे
इतना दम तो है मेरी आशिकी में

कोशिश मैं भी तो करता हूं भूलने की
कमबख्त अदा ही तुम्हारी कुछ ऐसी है...

editor said...

Pur-lutf nazm hai Abrar sahab