थम गईं सांसे,रुक गई दिल की धडकन।
एक अरसे बाद गुजरा था उसी मोड से मैं।।
जहां पहली बार तुम्हे देखा था।
जहां पहली बार तमसे की थी बात।
जहां पहली बार तुम सकुचाईं थीं।
जहां पहली बार बोलीं थीं तुम।
जहां अक्सर हम मिल ही जाते थे।
जहां पहुंचकर तुम सिकुड जाती थीं।
जहां कुछ देर वक्त ठहर जाता था।
जहां मेरा हर गम निपट जाता था।।
जहां तुमने किया था इकरार कभी।
जहां पूरे हुए थे मेरे ख्वाब सभी।
जहां दौडा था जी भर के खुशी से कभी।
जहां बैठे रहते थे छुपके दोस्त सभी।।
जहां आखिरी बार मिले थे उस दोपहरी में।
जहां आखिरी बार तुम्हें जी भर देखा था।
जहां आखिरी बार चला था साथ तेरे।
जहां आखिरी बार भरी थी गहरी सांस मैंने।।
अब तो यह मोड भी पूछती है मुझसे।
क्यूं छोड कर चली गई तुम मुझको।
अब यहां से गुजरने में डर लगता है।
जैसे इस मोड पर खडी तुम तलाशती हो मुझे।।
Wednesday, July 2, 2008
एक अरसे बाद गुजरा था उसी मोड से मैं
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10 comments:
अबरार जी
बहुत संवेदनशील रचना..दिल के भाव शब्दों में ढाल दिए आपने....बहुत खूब.
नीरज
बहुत ही बेहतरीन एवं उम्दा रचना.
bahut hi umada rachana,bhavuk bhi,badhai
bhut sundar.jari rhe.
bahut khoobsurat....man chhone wali...
बहुत खूब लिखा है
अब तो यह मोड भी पूछती है मुझसे।
क्यूं छोड कर चली गई तुम मुझको।
अब यहां से गुजरने में डर लगता है।
जैसे इस मोड पर खडी तुम तलाशती हो मुझे।।
bahut pyari laaine hain. Badhaayi.
aakhiri do panktiyan bahut khoobsoorat lagi.
जहां जाओगी भुला न पाओगी मुझे
इतना दम तो है मेरी आशिकी में
कोशिश मैं भी तो करता हूं भूलने की
कमबख्त अदा ही तुम्हारी कुछ ऐसी है...
Pur-lutf nazm hai Abrar sahab
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