तुमको देखा तो खामोशी से तर हो गया।
जिंदगी तेरी राहों में मैं रहगुजर हो गया।।
ताउम्र ना भरी चोट जिनसे लगी।
उन निगाहों का सदके नजर हो गया।।
रोते रोते अचानक मैं हंसने लगा।
उसकी सोहबत का ऐसा असर हो गया।।
तुमने ही तो लगाया था यह पौधा कभी।
पूछते हो हमसे यह कैसे जहर हो गया।।
ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे।
घर से निकले हुए इक पहर हो गया।।
तुमको देखा तो खामोशी से तर हो गया।
जिंदगी तेरी राहों में मैं रहगुजर हो गया।।
Tuesday, July 15, 2008
ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे
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13 comments:
बहुत उम्दा अबरार। बहुत वजन है तुम्हारे शब्दों मे। साधुवाद।
ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे।
घर से निकले हुए इक पहर हो गया।।
--बहुत उम्दा!
ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे।
घर से निकले हुए इक पहर हो गया।।
अबरार मियां लगता हे खास से मेरे लिये ही लिखा हे, क्या बात हे हर शेर एक से बढ कर एक धन्यवाद
बहुत खूब !
ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे।
घर से निकले हुए इक पहर हो गया।।
bahut badhiaa!
ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे।
घर से निकले हुए इक पहर हो गया।।
तुमको देखा तो खामोशी से तर हो गया।
जिंदगी तेरी राहों में मैं रहगुजर हो गया।।
behad umda ,bahut khoob.......
bahut acha... likhte rahen
ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे।
घर से निकले हुए इक पहर हो गया।।
bahut khub.....
ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे।
घर से निकले हुए इक पहर हो गया।।
bahut khub.....
ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे।
घर से निकले हुए इक पहर हो गया।।
bahut khub.....
ढूढती होगी मां बेचैन नजरों से मुझे।
घर से निकले हुए इक पहर हो गया।।
bahut khub.....
बहुत खूब,
पोस्ट अच्छी लगी
मेरे ब्लॉग पर भी आये
तुमने ही तो लगाया था यह पौधा कभी।
पूछते हो हमसे यह कैसे जहर हो गया।।
ye sher bada pasand aaya hamein, kuch yaadein barbas bin dastak diye chali aayin...khoobsoorat gazal.
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