Saturday, June 14, 2008

जिंदा रहने के लिए सौ बार भी मर जाउंगा

सांस दर सांस तेरे जिश्म में उतर जाउंगा।

जिंदा रहने के लिए सौ बार भी मर जाउंगा।।

इक मुददत के बाद अब जाकर खुद को जोडा है।

अबकी रूठोगे तो हर सिम्त बिखर जाउंगा।।

जानता हूं कि शक्ल ओ सूरत से बडा कमतर हूं।

पर एक ना एक दिन उन आंखों में संवर जाउंगा।।

मैं तो मुसाफिर हूं जरा देर के लिए ठहरा हूं।

हकीकत यही है कि यहां से भी गुजर जाउंगा।।

इस उम्र में कर लेने दो नादानियां जी भर के मुझे।

वक्त जब आएगा तो मैं भी सुधर जाउंगा।।

सांस दर सांस तेरे जिश्म में उतर जाउंगा।

जिंदा रहने के लिए सौ बार भी मर जाउंगा।।

4 comments:

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

इक मुददत के बाद अब जाकर खुद को जोडा है।
अबकी रूठोगे तो हर सिम्त बिखर जाउंगा।।
बहुत खूब। अबरार बहुत गहरे लेकर चले गए। इसी तरह लिखते रहो। साधुवाद।

सुकांत महापात्र said...

हर शेर अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है। अबरार भाई आपको पढ कर बहुत सुकून मिलता है। लिखते रहिए। बहुत खूब। बधाई।

mehek said...

bahut hi khubsurat hai gazal hamesha ki tarha ye sher khas pasand aaye bahut badhai
जाउंगा।।इस उम्र में कर लेने दो नादानियां जी भर के मुझे।वक्त जब आएगा तो मैं भी सुधर जाउंगा।

मृत्युंजय कुमार said...

दर्द की राह में बन फूल िबखर जाउंगा।
तेरे अशआर देख मैं भी िनखर जाउंगा।
वो कौन है िजसने तुमको बदल डाला है
लगता है गजल मैं भी िलखने लग जाउंगा।