आज भी याद है मुझको।
उस जनवरी की वह सर्द भोर।
जब नींद आंखों से गायब थी।
क्योंकि उनमें तू जो समाई थी।।
आज भी याद है मुझको।
उस जनवरी की वह सर्द भोर।।
यकीन नहीं होता अब।
कि तब किस्मत भी थी मेहरबान।
निकलता था जब भी कहीं।
तो तू मिल ही जाती थी।
और ऐसा लगता था।
मानो सफल हो गया जागना मेरा।
आज भी याद है मुझको।
उस जनवरी की वह सर्द भोर।।
अब तो एक अरसा गुजर गया।
अब तो देर तक सोता हूं।
अब जनवरी में ठंड भी बहुत लगती है।
लेकिन आज भी याद है मुझको।
उस जनवरी की वह सर्द भोर।।
8 comments:
बहुत भावपूर्ण रचना!
beshak lage raho
wah bahut hi sundar yaadon ka guldasta hai,bahut badhai
bhaav bhari rachna-
yaaden to hamesha hi saath rahti hain--
सुंदर रचना है
very nice. lage raho
bahut badhia. dil ki bat kah di aapne.
सुंदर और भावपूर्ण रचना.
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