Monday, June 9, 2008

उस जनवरी की वह सर्द भोर

आज भी याद है मुझको।

उस जनवरी की वह सर्द भोर।

जब नींद आंखों से गायब थी।

क्योंकि उनमें तू जो समाई थी।।

आज भी याद है मुझको।

उस जनवरी की वह सर्द भोर।।

यकीन नहीं होता अब।

कि तब किस्मत भी थी मेहरबान।

निकलता था जब भी कहीं।

तो तू मिल ही जाती थी।

और ऐसा लगता था।

मानो सफल हो गया जागना मेरा।

आज भी याद है मुझको।

उस जनवरी की वह सर्द भोर।।

अब तो एक अरसा गुजर गया।

अब तो देर तक सोता हूं।

अब जनवरी में ठंड भी बहुत लगती है।

लेकिन आज भी याद है मुझको।

उस जनवरी की वह सर्द भोर।।

8 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत भावपूर्ण रचना!

ओमप्रकाश तिवारी said...

beshak lage raho

Anonymous said...

wah bahut hi sundar yaadon ka guldasta hai,bahut badhai

Alpana Verma said...

bhaav bhari rachna-

yaaden to hamesha hi saath rahti hain--

रंजू भाटिया said...

सुंदर रचना है

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

very nice. lage raho

सुकांत महापात्र said...

bahut badhia. dil ki bat kah di aapne.

बालकिशन said...

सुंदर और भावपूर्ण रचना.