Sunday, June 8, 2008

बिछ गई है बिसात शतरंज की

बिछ गई है बिसात शतरंज की अब।
एक को जीतना तो एक को हारना होगा।।

जिंदा रहने की इस लडाई में।
जाने किस किस को मारना होगा।।

झूठ इक उम्र जी चुका अपनी।
सच से अब उसका भी सामना होगा।।

ताउम्र टिक नहीं सकता कोई उस ऊंचाई पर।
इस हकीकत को तुम्हें भी मानना होगा।।

माथे की लकीरें पढने वाले अब कहां हैं दुनिया में।
सब झूठ का पुलिंदा है इस बात को जानना होगा।।

जब टूट जाए आस इस दुनिया से।
तब उस खुदा का हाथ ही थामना होगा।।

5 comments:

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

बहुत खूब अबरार। आज के जमाने की हकीकत बयां कर दी तुमने। आशीर्वाद स्वीकारो।

mehek said...

ताउम्र टिक नहीं सकता कोई उस ऊंचाई पर।
इस हकीकत को तुम्हें भी मानना होगा।।

माथे की लकीरें पढने वाले अब कहां हैं दुनिया में।
सब झूठ का पुलिंदा है इस बात को जानना होगा।।

bilkul sahi sachhi baat bayan ki hai,bahut hi sundar

रंजू भाटिया said...

माथे की लकीरें पढने वाले अब कहां हैं दुनिया में।
सब झूठ का पुलिंदा है इस बात को जानना होगा।।

जब टूट जाए आस इस दुनिया से।
तब उस खुदा का हाथ ही थामना होगा।।

बहुत खूब लिखा है ..

सुकांत महापात्र said...

बहुत खूब अबरार भाई। हर शेर दमदार है। बधाई हो।

Anonymous said...

लाजवाब, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने...