त्वरित संचार के इस काल में जब हर शहर की छोटी बडी खबरें हमारे टीवी स्क्रीन पर उपलब्ध हो जा रही हैं तो अखबार क्यों। यह वह सवाल है जो नई पीढी का कोई भी बंदा बेझिझक पूछ सकता है। सवाल वाकई में सोचने पर मजबूर करता है कि अखबार क्यों। आज जब हमारे पास इतना वक्त नहीं कि हम चैन से सो सकें या अपने बच्चों का होमवर्क करा सकें तब 18 या 22 पेज का कोई अखबार पढना एक आदमी के लिए कितना मुनासिब हो सकता है। यह प्रेक्टिकल बात है इस पर गौर करने की जरूरत है। मौजूदा समय में अखबार को जो सबसे ज्यादा चुनौती मिल रही है वह इंटरनेट से है। इंटरनेट पर आज हर खबर मौजूद है। बावजूद इसके अखबार का वजूद अब भी देश में बहुत मजबूत है और आने वाले समय में इस वजूद में इजाफे की पूरी संभावनाएं दिख रही हैं। यह भी सोचने वाली बात है। अखबार का प्रसार और पाठक संख्या जैसा कि अखबारों के सर्वे बताते हैं बढती ही जा रही है। इसके कई कारण हैं। इन सभी कारणों पर बाकायदा बहस कराई जा सकती है। अखबारों के बढने के पीछे एक मजबूत कारण जो मुझे दिखाई देता है वह यह है कि अखबार आज हमारे लिए स्टेटस सिंबल की तरह काम कर रहे हैं या फिर अखबार लेना एक तरह की मजबूरी हो गई है कि अखबार तो घर में आना ही चाहिए चाहे उसे कोई पढे या न पढे। हां एक बार नजर दौडा ली जाए तो बेहतर है। दूसरा कारण जो अभी दिखाई दे रहा है वह लाभ कि स्थिती से है। अखबारी दुनिया में आए बूम ने देश में जो प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी है उसका नतीजा यह निकला है कि अब देश के अधिकांश अखबार स्कीम की बदौलत बिक रहे हैं। साथ ही सालाना बुकिंग के साथ। इसमें अखबार की रददी और गिफ्ट का बडा रोल है। यह दो मुख्य वजहें अभी फिलहाल तो अखबारों के प्रचार प्रसार और पाठक संख्या को बढा रही हैं। केबल और इंटरनेट के इस युग में अखबार जिंदा है वह भी पूरे शान के साथ। कारण चाहे कुछ भी हो और अखबार आने वाले समय में भी इसी तरह जिंदा रहेगा अब यह देखना है कैसे। चलिए सुबह अखबार भी पढना है।
Tuesday, June 24, 2008
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1 comment:
मैं भी अभी आज का अखबार ही देख रहा हूँ मगर न जाने क्यूँ..सब पढ़ा पढ़ा सा लग रहा है. शायद इन्टरनेट पर. क्या पता!!
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