हम आइने की तरह साफ हैं।
जो हकीकत है वही दिखाते हैं।।
घरों को तोडने वालों जरा उनसे पूछो।
तिनका तिनका जोड के जो घर बनाते हैं।।
जिंदगी के हर मोड पर जिनके साथ खडे रहे।
वक्त पडने पर क्यूं वही हमें आजमाते हैं।।
हम खा चुके हैं धोखा किसी पर भरोसा करके।
जमात न बढे अपनी इसलिए हर वादा निभाते हैं।।
वक्त ने छीन लिए जब सारे राजदार हमसे।
हम भी इंसान हैं दीवारों को अपने किस्से सुनाते हैं।
Sunday, June 29, 2008
हम आइने की तरह साफ हैं
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7 comments:
बहुत खूब अबरार भाई। बधाई।
हम खा चुके हैं धोखा किसी पर भरोसा करके।
जमात न बढे अपनी इसलिए हर वादा निभाते हैं।।
--बेहतरीन!!
wah bahut khubsurat
wah wah wah Abrar ji
kamaal
aap to bhaut hi achha likhte ho ab aapke har kalaam ka intezaar rahega
bahut khoob likha hai
लाजवाब............
आखिरी शेर लाजवाब है...वाह
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